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परन्तु पूर्व और मुख्य रूप से भारत में तत्वों के अन्वेषण की प्रवृत्ति सुदूर अतीतकाल से है । इस प्रवृत्ति के दो रूप हैं - प्रज्ञामूलक और तर्कमूलक । प्रज्ञा द्वारा तत्वों का विवेचन और तर्क द्वारा तत्वों का समीक्षण किया जाता है । इन दोनों का एक मात्र लक्ष्य है—आत्मानं-विद्धि, आत्मदर्शन, जो परोक्ष न होकर अपरोक्ष - प्रत्यक्ष हो । आत्मा का अपरोक्ष ज्ञान होना ही दर्शन का प्रयोजन है ।
अतएव अब भारतीय दर्शन के मुख्य भेदों का संकेत करके उनके चिन्तन का विचार करते हैं ।
पूर्व में यह बताया है कि चिन्तन के प्ररूपक जितने कथन हैं, उतने ही दर्शन हो सकते हैं । अतः हमें यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि दर्शन के अनन्त प्रभेद हैं । फिर भी उन अनन्त भेदों में पाई जाने वाली आंशिक समानताओं के आधार पर आगमों में पर समय के रूप में विस्तार से ३६३ ( तीन सौ त्रेसठ ) भेद गिनाये हैं । इन भेदों को भी क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनय वादी इन चार में समाहित करके ३६३ भेदों में से १५० क्रियावादी के, ८४ अक्रियावादी के, ६७ अज्ञान वादी के और ३२ विनयवादी के भेद बताये गये हैं ।
इसी तरह वैदिक ऋषियों द्वारा भी दर्शनों की संख्या व नाम निश्चित किये जाने के प्रयत्न हुए हैं। पुराणों में न्याय, सांख्य, योग, मीमांसा और लोकायत यह दर्शनों के नाम देखने में आते हैं । FT की प्रारम्भिक शताब्दियों में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा वैदिक दर्शनों के रूप में माने जाने लगे और मीमांसा के कर्म व ज्ञान यह दो भेद हो गए । जो क्रमश: पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
वेदाश्रित यह छह भेद भी स्वयं वैदिकों ने स्वो कार नहीं किये । यही कारण है कि वाचस्पति मिश्र ने वैशेषिक दर्शन को छोड़कर शेष पाँच दर्शन-भेदों की अपनी ग्रन्थों में व्याख्या की तथा वैशेषिक की
तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
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पृथक् व्याख्या इसलिये नहीं की कि उसके तत्वों का विवेचन न्यायदर्शन में हो जाता है ।
माधवाचार्य ने अपने सर्वदर्शनसंग्रह ग्रंथ में सोलह दर्शनों के नाम गिनाकर उनकी व्याख्या की है। उनमें वेदाश्रित दर्शन-भेदों के साथ अवैदिक जैन, बौद्ध व चार्वाक दर्शनों का ग्रहण किया है ।
माधव सरस्वती के सर्वदर्शन कौमुदी ग्रंथानुसार योग, सांख्य, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा, नैयायिक और वैशेषिक यह छह वेदाश्रित दर्शन हैं तथा अवैदिक दर्शन के बौद्ध, चार्वाक व आर्हत यह तीन भेद हैं ।
इसी प्रकार से अनेक विद्वानों ने अपनी-अपनी दृष्टि से दर्शन-भेदों व उनके नामों का उल्लेख किया है । उन सबका परिचय स्वतन्त्र लेख का विषय है |
अतः प्रकृत में उन्हीं दर्शन नामों का संकेत करते हैं, जो वर्तमान में प्रसिद्ध हैं । वे नाम इस प्रकार हैं
१. जैन २. बौद्ध ३. सांख्य ४ नैयायिक ५. वैशेषिक ६. जैमिनीय ( मीमांसा ) |
ये दर्शन दृश्य-अदृश्य, लोक-परलोक, जीव आदि ar अस्तित्व स्वीकार करने वाले होने से आस्तिकवादी के रूप में प्रख्यात हैं और जीव का अस्तित्व नहीं मानने से चार्वाक नास्तिकवादी कहलाता है । इसीलिए विद्वानों ने उसे दर्शन के रूप में तो स्वीकार नहीं किया किन्तु दृष्टि को समझने के लिये उसकी दलीलों का संग्रह कर दिया । भारतीय दर्शनों की चिंतन प्रणालियाँ
भारतीय दर्शन के उक्त छह भेद प्रायः सर्वमान्य हैं । प्रत्येक दर्शन के समर्थ आचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में उनकी तात्विक व चिन्तन दृष्टि का जो विस्तार से वर्णन किया है, उसकी रूपरेखा का यहाँ उल्लेख करते हैं ।
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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