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जागृति से या ध्यान साधना से जितने दुर्लक्ष्य है व्यापार चलता है क्या इस प्रकार की प्रवृत्तियों से 5 उतना शायद ही दूसरे से ।
किसी के भव-भ्रमण टले हैं ? ये राग और द्वेष ___ ध्यान साधना की उपेक्षा का परिणाम प्रत्यक्ष दूसरे जन्म में भी साथ रहेंगे उसको शृंखला चलती है। साधक साधना करता हआ जरूर प्रतिलक्षित रहेगी और हमारे जन्म बढ़ते रहेंगे। होता है, अनेक प्रकार के धर्मानुष्ठानों का कार्य कदम उठाओ, आगे बढ़ो और हमारे बढ़ते हुए यत्र तत्र सर्वत्र होते हुए दिखलाई देते हैं, किन्तु संसार को अल्प करो। परित्त संसारी होने का सीधा अन्तर्मन टटोलो, वही धर्मानुष्ठानों से पैदा होने उपाय है ध्यान, सात्त्विक भावना का अनुचिन्तन वाला द्वन्द्व चारों ओर दृष्टिगोचर होता है । व्या- तथा अरिहन्त परमात्मा का अभेद । भेद से भय पक साम्राज्य भरा है, और वासना की और अभेद से अभय । शीघ्र पाने का सरल उपाय अनेक फेक्टरियाँ लगी हैं। दम्भ, द्वेष, मत्सर का है ध्यान ।
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ध्यान का महत्व
सीसं जहा सरीरस्स, जहा मूलं दुभस्स य । सव्वस्स साधु धम्मस्स, तहा झाणं विधीयते ॥
-इसि० २२,१४ जो स्थान शरीर में मस्तक का है और वृक्ष के लिए मूल का है वहो स्थान समस्त मुनिधों के लिए ध्यान का है।
ध्यान मित्र के समान रक्षक
झाणं किलेससावदरक्खा रक्खा व सावद-भयम्मि । झाणं किलेसवसणे मित्तं मित्ते व वसणम्मि ।।
-भग० आ० १८९७
जैसे श्वापदों का भय होने पर रक्षक का और संकटों में मित्र का महत्व है, वैसे ही संक्लेश परिणामरूप व्यसनों के समय ध्यान मित्र के समान रक्षक है।
तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन |
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ )
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