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________________ ( १८ पूजनीया गुरणी जी महाराज का जैन समाज पर तो उपकार है ही किन्तु हम शिष्याओं पर भी असीम उपकार है । वस्तुस्थिति तो यह है कि आज हम जो भी हैं, जैसी भी हैं यह उनकी असीम अनुकम्पा का परिणाम है । अपने उपकारी के प्रति हमारा ( उनकी शिष्याओं का ) भी कुछ कर्तव्य होता है । इसी कर्तव्य पालन के रूप में यह अभिनन्दन ग्रन्थ चौवनवें दीक्षा वर्ष, दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर उनके चरणों में सहज श्रद्धा, सभक्ति, सादर समर्पित किया जा रहा है । प्रस्तुत ग्रन्थ में कुल सात खण्ड हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है प्रथम खण्ड में गुरु भगवन्तों वरिष्ठ मुनिराजों महासतियों आदि के आशीर्वचन, शुभकामना संदेश शिष्याओं अनुयायी वर्ग के श्रद्धासुमन शुभकामना सन्देश हैं । इन आशीर्वचनों और शुभकामना संदेश, में भी गुरुणी जी के जीवन को विशिष्टताओं के दिग्दर्शन होते हैं । द्वितीय खण्ड में परम श्रद्धेय आचार्य श्री अमर सिंहजी महाराज की गौरव गरिमा मंडित गुरुणी परम्परा का विवरण दिया गया है एवं परमविदुषी गुरुणी जी श्री कुसुमवती जो म० सा० के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है । प्रारम्भ में गुरुणीजी म. सा. का जीवन परिचय यद्यपि विस्तृत रूप से देने का प्रयास किया है तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि अभी भी इसमें कुछ कमी रह गई है। अनेक महत्वपूर्ण संस्मरण तथा घटनाएँ स्मृति के बाहर होने से लिपिबद्ध नहीं की जा सकी हैं । भविष्य में उनका संग्रह कर स्वतन्त्र रूप शित करवाने का प्रयास किया जाएगा । प्रका तृतीय खण्ड में धर्म तथा दर्शन में जैन परंपरा की परिलब्धियों को वर्तमान राष्ट्रीय सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । यद्यपि इस सन्दर्भ में अपेक्षित सामग्री का अभाव रहा है तथा जो भी सामग्री है, उसके प्रस्तुतीकरण से एक नवीन अवधारणा का जन्म हुआ है । श्र Jain Education International ) चतुर्थ खण्ड जैन संस्कृति के विविध आयामों को उद्घाटित करने वाला है । इस खण्ड में जैन संस्कृति से सम्बन्धित मौलिक चिन्तन प्रधान एवं शोध-प्रधान निबन्धों का संग्रह किया गया है । पंचम खण्ड में जैन साहित्य और इतिहास से सम्बन्धित विद्वानों के महत्वपूर्ण लेख संग्रहीत हैं । यद्यपि जैन साहित्य अथाह समुद्र के समान है तथापि एक झलक यहाँ प्रस्तुत की गई है । षष्ठम खण्ड में विविध राष्ट्रीय सन्दर्भों में जैन परम्परा की उपलब्धियों के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री का संकलन किया गया है । ग्रन्थ के सप्तम खण्ड में परमविदुषी गुरुवर्या श्री के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी गद्यपद्य रचनाएँ दी गई हैं। विस्तार भय से उनके प्रवचन, कहानी, निबन्ध, चिन्तनसूत्र, भजन, स्तवन आदि के कुछ अंश ही दिये गये हैं जिससे पाठक उनके कृतित्व से परिचित हो सकें । इस प्रकार यह महाग्रन्थ सात खण्डों में विभक्त है । श्रमण और श्रमणियां सप्त भय स्थान से मुक्त होती हैं उनके जीवन में अभय का आघोष होता है इसलिए प्रस्तुत ग्रंथ के सात खण्ड रखे गये हैं यों तो अभिनंदन ग्रन्थ समर्पण की एक परम्परा बन गयी है पर उसमें सम-सामयिक कला, साहित्य, संस्कृति आदि अनेक विधाओं का समावेश होने से अभिनन्दनीय व्यक्तित्व की गुण गौरव गाथा का गान तो कम होता है, किन्तु उच्चस्तरीय मौलिक चिन्तनधारा का सुन्दर समावेश पाठकों के लिए वरदान स्वरूप सिद्ध होता है । साध्वीरत्न गुरुणी जी श्री कुसुमवती जी अभिनंदन ग्रन्थ में भी यही विशेषता प्रधान रूप से विद्यमान है । अभिनन्दन ग्रन्थ के भगीरथ कार्यं को सम्पन्न करने के लिए अनेक महामनीषियों का मुझे हार्दिक सहयोग प्राप्त हुआ है । मैं सर्वप्रथम श्रमण संघ के नायक महामहिम राष्ट्रसंत आनन्द ऋषिजी जी महाराज की असीम कृपा को भूल नहीं सकती, साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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