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________________ सजन और विलय के बीच समरसता स्थापित किया है । परमाणुवाद का पूरा प्रासाद पुद्गल के ICS Kा करने के लिए "ध्रौव्य" (स्थिरता) की कल्पना की सूक्ष्म विश्लेषण पर आधारित रहा है जो आधुनिक गई। त्रिमूर्ति (ट्रिनिटी) की धारणा में ब्रह्मा, परमाणुवाद के काफी निकट है। विष्ण और महेश क्रमशः सृजन, स्थिरता या तुल्य- जैन-परमाणवाद और विज्ञान भारिता तथा विलय के देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप से पुद्गल की संरचना को लेकर जैन-दर्शन ने जो एक प्रकृति की तीन शक्तियों (सृजन, सामरस्य और विश्लेषण प्रस्तुत किया है, वह पदार्थ के सूक्ष्म । विलय) के प्रतीक हैं। द्रव्य का यह अनित्य रूप तत्वों (कणों) की ओर संकेत करता है । विज्ञान विज्ञान के द्वारा भी मान्य है, जहाँ पदार्थ रूपान्त- ने पदार्थ की सूक्ष्मतम इकाई को परमाण कहा है - रित होता है न कि विनष्ट । विज्ञान और जैन मत जिसके संयोग से "अणु" की संरचना होती है, और | में द्रव्य का यह रूप समान है, पर एक अन्तर भी इन “अणुओं" के संघात से उत्तक (टीशू) का है। जैन दर्शन में 'आत्मा" नामक प्रत्यय को भी निर्माण होता है। जवकि संरचना में कोष (सेल) द्रव्य माना गया है जिस प्रकार आकाश या स्पेस सूक्ष्मतम इकाई है जिसके संयोग से अवयव (आकाशास्तिकाय) काल या टाइम (कालास्तिकाय) (आर्गन) का निर्माण होता है। इस प्रकार समस्त आदि को द्रव्य के रूप में ही माना गया है। जैविक और अजैविक संरचना में अणुओं, परमाणुओं विज्ञान के क्षेत्र में द्रव्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण कोषों तथा अवयवों का क्रमिक साक्षात्कार होता है । नहीं किया गया है जितना कि जैन-दर्शन में। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण सृष्टि का आधुनिक विज्ञान और विशेषकर भौतिकी, गणित "क्रमिक विकास हुआ है। जैन आचार्यों की परऔर रसायन की अनेक नवीन उपपत्तियों में पदार्थ माणु और स्कन्ध की धारणाओं में उपर्युक्त तथ्यों के सूक्ष्मतर तत्वों की ओर संकेत मिलता है। का समावेश प्राप्त होता है। जैन मतानुसार परप्रसिद्ध वैज्ञानिक-दार्शनिक बन्ड रसेल ने पदार्थ माणु पदार्थ का अन्तिम रूप है जिसका विभाजन के स्वरूप पर विचार करते हुए कहा है कि "पदार्थ सम्भव नहीं है । यह इकाई रूप ऐसा है जिसकी न वह है जिसकी ओर मन सदैव गतिशील रहता है, लम्बाई-चौड़ाई और न गहराई होती है अर्थात् विन्तु "वह" उस तक कभी पहुँच नहीं पाता है। __ जो स्वयं ही आदि, मध्य और अन्त है । आधुनिक आधुनिक पदार्थ भौतिक नहीं है।" विज्ञान ने परमाणु को विभाजित किया है और उसकी आन्तरिक संरचना पर प्रकाश डाला है। जैन-दर्शन में पदार्थ के उपयुक्त स्वरूप से एक परमाण की संरचना में प्राप्त इलेक्ट्रॉन, प्रोटान, बात यह स्पष्ट होती है कि यहाँ द्रव्य एक ऐसा पाजिट्रान तथा न्यूट्रान आदि सूक्ष्म अंशों की प्रत्यय है जो “सत्ता-सामान्य" का रूप है । सत्ता जानकारी आज के विज्ञान ने दी है । दूसरी ओर, सामान्य के छह भेद किये गये हैं-धर्मास्तिकाय से सौर मण्डल की संरचना के समान परमाणु की लेकर कालास्तिकाय तक जिसका संकेत ऊपर संरचना को स्पष्ट किया है। इस वैज्ञानिक प्रस्थाकिया जा चुका है। जहाँ तक पुद्गल या पदार्थ का पना के द्वारा यह दार्शनिक तथ्य भी प्रकट होता सम्बन्ध है, वह द्रव्य का एक विशेष प्रकार है, है जो पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में है। अतः मनि जिसका विश्लेषणात्मक विवेचन जैन आचार्यों ने नगराज जी ने भी यह मत रखा कि विज्ञान में 1 Mitter is something in which Mind is being led, but which it never reaches. Modern matter is not material. --उद्धत, फिलासिफिकल एसपैक्ट्स आफ माडन साइंस, सी. ई. एम. जोड, पृष्ठ ८३ २२६ तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन 6 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only : www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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