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रूढ़ियाँ नहीं, किसी के प्रति घृणा नहीं, मनुष्य धर्म की उपर्युक्त धारणायें आज टूट चुकी हैं। मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं अपितु मनुष्य में मनु- विज्ञान ने हमें दुनियाँ को समझने और जानने का ष्यता के गुणों के विकास की शक्ति है; सार्वभौम तर्कवादी रास्ता बताया है । विज्ञान ने यह स्पष्ट चेतना का सत्-संकल्प है।
किया कि यह विश्व किसी की इच्छा का परिणाम आज के विश्व के लिए किस प्रकार का धर्म नहीं है । विश्व तथा सभी पदार्थ कारण कार्य भाव एवं दर्शन सार्थक हो सकता है ?
से बद्ध हैं । भौतिक विज्ञान ने सिद्ध किया है कि
जगत में किसी पदार्थ का नाश नहीं होता केवल ___ मध्य युग में विकसित धर्म एवं दर्शन के पर
रूपान्तर मात्र होता है। इस धारणा के कारण इस म्परागत स्वरूप एवं धारणाओं में आज के व्यक्ति
जगत को पैदा करने वाली शक्ति का प्रश्न नहीं की आस्था समाप्त हो चुकी है । इसके कारण हैं। उठता । जीव को उत्पन्न करने वाली शक्ति का ___मध्ययुगीन चेतना के केन्द्र में 'ईश्वर' प्रतिष्ठित प्रश्न नहीं उठता। विज्ञान ने शक्ति के संरक्षण के था। हमारा सारा धर्म एवं दर्शन इसी 'ईश्वर' के सिद्धान्त में विश्वास जगाया है। पदार्थ की अनश्वचारों ओर घूमता था। सम्पूर्ण सृष्टि के कर्ता, रता के सिद्धान्त की पुष्टि की है। समकालीन पालनकर्ता, संहारकर्ता के रूप में हमने 'परम पाश्चात्य अस्तित्ववादी दर्शन ने भी ईश्वर का शक्ति' की कल्पना की थी। उसी शक्ति के अवतार निषेध किया है। उसने यह माना है कि मनुष्य का के रूप में, या उसके पुत्र के रूप में या उसके प्रति- सष्टा ईश्वर नहीं है। मनुष्य वह है जो अपने निधि के रूप में हमने ईश्वर, ईसा या अल्लाह को आपको बनाता है। माना तथा उन्हीं की भक्ति में अपनी मुक्ति का इस प्रकार जहाँ मध्ययुगीन चेतना के केन्द्र में मन्त्र मान लिया । स्वर्ग की कल्पना, देवताओं की
___ 'ईश्वर' प्रतिष्ठित था वहाँ आज की चेतना के केन्द्र
ही कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, में मनष्य' प्रतिष्ठित है। मनुष्य ही सारे मूल्यों का अपने देश एवं अपने काल की माया एवं प्रपची से मोत है। वही सारे मूल्यों का उपादान है। आज परिपूर्ण अवधारणा आदि बातें हमारे मध्ययुगीन के मनुष्य के लिए ऐसा धर्म एवं दर्शन व्याख्यायित धर्म दर्शन के घटक थे । वर्तमान जीवन की मुसी- करना नोगा जो 'ईश्वरवादी' नहीं होगा, भ बतों का कारण हमने अपने विगत जीवन के कमा वादी नहीं होगा। उसके विधानात्मक घटक होंगे
करना होगा जो 'ईश्वरवादी' नहीं होगा. भाग । कारण हमने अपने विगत जीवन को मान लिया । वर्तमान जीवन में अपने श्रेष्ठ
(१) मनुष्य, (२) कर्मवाद की प्रेरणा, (३) सामाआचरण द्वारा अपनी मुसीबतों को कम करने की
जिक समता। तरफ हमारा ध्यान कम गया, अपने आराध्य की।
____ आज के अस्तित्ववादी दर्शन में, विज्ञान के स्तुति एवं जयगान की ओर अधिक ।
द्वारा प्रतिपादित अवधारणाओं में तथा साम्यवादी ईश्वर और मनुष्य के बीच के बिचौ- शासन-व्यवस्था में कुछ विचार प्रत्यय समान हैं। लियों ने मनुष्य को सारी मुसीबतों, कष्टों, विपदाओं से मुक्त होकर स्वर्ग, बहिश्त में मौज की।
(१) तीनों ईश्वरवादी नहीं हैं। ईश्वर के
स्थान पर मनुष्य स्थापित है । जिन्दगो बिताने की राह दिखायी और बताया कि हमारे माध्यम से अपने आराध्यों के प्रति तन, मन, (२) तीनों भाग्यवादी नहीं हैं। कर्मवादी तथा धन से समपित हो जाओ-पूर्ण आस्था, पूर्ण पुरुषार्थवादी हैं। विश्वास, पूर्ण निष्ठा के साथ भक्ति करो । तर्क को (३) तीनों में मनुष्य की जिन्दगी को सुखी साधना पथ का सबसे बड़ा शत्रु मान लिया गया। बनाने का संकल्प है । तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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