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मानव सृष्टि के पूर्व तथा पश्चात् जो कुछ भी अस्तित्ववान् था, है | अथवा सम्भावित है, उनके मनन तथा चिन्तन का इतिहास अनादि । है । अनादि परम्परा से सृष्टि की उत्पत्ति तथा विनाश का अर्थ किसी शाश्वत अव्यक्त की अभिव्यक्ति तथा संहार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । चाहे वह वैदिक ऋषियों के गहन प्रयोग और अनुभवपरक प्रमाणित किये गये सिद्धान्त वचन हों; वेदान्त दर्शन तथा नास्तिक दर्शनों की क्रान्तिपूर्ण वैज्ञानिक व्याख्याएँ हों; यूनान, इटली, जर्मनी तथा चीन की दार्शनिक मान्यताएँ हों; अथवा आधुनिक विज्ञान की विभिन्न शाखाएं तथा उनके अध्ययन की सीमाएँ; सबके अध्ययन का विस्तार वहीं तक है, जहाँ तक दृष्टि का, बुद्धि का, मन का प्रसार है । दूसरे
शब्दो में जो कुछ 'अस्ति' की सीमा में आता है, वह सब चिन्तन का INS - जैन पदार्थ-विवेचना में विषय है। हाँ, यह अवश्य है कि अध्ययन की विधि, उद्देश्य तथा
स्वरूप में भिन्नता है । सृष्टि के जड़-चेतन का अथवा जीव-जगत का मूल वैज्ञानिक दृष्टि कारण, मूलभूत तत्व-चाहे वह वेदान्त का ब्रह्म हो अथवा चार्वाकों
का परमाण-स्वभाव, अनादि अनन्त शाश्वत है। चाहे वह एक हो या 8 अनन्त, मूल तत्व या तत्वों की निरन्तर गतिशील परिवर्तन की सहज, स्वाभाविक प्रक्रिया, तत्वों का संचय और प्रचय, विस्तार और संकोच, सब कुछ किसी स्वचालित, स्वाभाविक ऊर्जा के अजस्र-स्रोत की भाँति 13 अविच्छिन्न-गति से निरन्तर चलता रहता है। यह क्रम ही सष्टि को काल के पथ पर ले जाता हुआ प्रलय, महाप्रलय, सृष्टि, स्थिति की नेमि पर (C) घुमाता रहता है, अविराम यात्री की भांति, जिसका पाथेय ही गम्य हो।
उस अव्यक्त तथा उससे व्यक्त पदार्थ जगत् के स्वरूप, कार्य तथा
गति को देखने, निरीक्षण, परिवीक्षण, अन्वीक्षण तथा व्यक्तीकरण -डॉ. नवलता की क्षमता और दृष्टिकोण की विभिन्नता अवश्य ही परिलक्षित होती
है । जो कुछ भी ज्ञय तथा अभिधेय है, वह या तो दृश्य, मूर्त, भौतिक प्रवक्ता-वि. सिं. स. ध. कालेज,
पदार्थ के रूप में है अथवा अमूर्त प्रत्यय के रूप में। पदार्थ और प्रत्यय कानपुर
भिन्न हैं अथवा अभिन्न ? तात्विक दृष्टि से दोनों का साधर्म्य तथा वैधर्म्य किस सीमा तक बोध्य है ? दोनों की वैज्ञानिक व्याख्या के आधार तथा दार्शनिक चिन्तन की पृष्ठभूमि क्या है ? इस विषय में : वैमत्य रहा है । कुछ विचारकों के मतानुसार प्रत्यय मात्र-वेद्य तत्व की प्रधानता तथा तात्विक सत्ता है, कुछ शास्त्रवेत्ता केवल पदार्थ (ज्ञ य वस्तु-आकार) को ही अध्येय तथा व्याख्येय मानते हैं, कुछ ... दार्शनिक पदार्थात्मक प्रत्ययवाद, तो कुछ प्रत्ययात्मक पदार्थवाद के पोषक हैं।
तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
२०१६
0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 0
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