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सुलसा की महत्ता इसी बात से प्रकट होती है कि महत्तरा का नामोल्लेख किये बिना भी नहीं रहा भगवान् महावीर ने अंबड के माध्यम से उसे धर्म- जा सकता। याकिनी महत्तरा के कारण सन्देश भिजवाया था। यह सूलसा की धर्मनिष्ठता ही आचार्य हरिभद्र जैसे सर्वतो प्रतिभासम्पन्न और श्रमणोपासकता का ज्वलन्त उदाहरण है। आचार्य जैन जगत को उपलब्ध हुए हैं । उन्हें प्रति
बोधित कर याकिनी महत्तरा ने बहुत बड़ा उपकार भगवान् महावीर के समय जिन अन्य महान
किया। स्वयं आचार्य हरिभद्र ने भी याकिनी महमहासतियों का उल्लेख आता है। उनके नाम हैं--
त्तरा का उपकार माना है और अपने साहित्य महासती श्री प्रभावती, महासती पद्मावती, महासती मृगावती, महासती चन्दनबाला, महासती
में सर्वत्र उनके नाम का उल्लेख किया है। दूसरे
महत्तरा शब्द से इस महिमामण्डित साध्वी का ? शिवा, महासती चेलणा आदि आदि । एक ही रात्रि में दो-दो महासतियों को केवलज्ञान की उपल
समाज में रहा प्रभाव भी परिलक्षित होता है। ब्धियाँ होना एक प्रकार से आश्चर्य ही है। जिस
___ऊपर कुछ महिमामयी, गरिमामयी, महाससमय भगवान् महावीर कौशाम्बी पधारे तो वहाँ तिया के नामो का उल्लेख किया है ऐसी ही महासंध्या के समय भगवान महावीर के दर्शनार्थ सर्य सतियों का योगदान आगे भी रहा है। किन्तु यह
और चन्द्र भी पधारे। इस कारण मगावती को दुर्भाग्य का ही विषय रहा है कि साध्वी समाज का या समय का ध्यान नहीं रहा। जब वह धर्मस्थानक में क्रमबद्ध इतिवृत्त प्राप्त नहीं होता है। पुरुष वर्ग को I A आई तो रात हो चुकी थी। इस पर महासती छोड़ भी दें तो स्वयं साध्वी समाज ने भी इस ओर चन्दनबाला ने उपालम्भ दिया। महासती मृगावती
कोई ध्यान नहीं दिया है। इसका एक मख्य कारण ने इसके लिए क्षमा-याचना की और पश्चात्ताप जैन साधना पद्धति की निर्लिप्त भावना भी है। करती हुई भावनाओं की उच्चतम श्रेणी में जा जैन साधक/साधिकायें कभी भी अपने नाम के पहुँची और केवलज्ञान प्राप्त हो गया। उस समय पीछे या प्रसिद्धि के पीछे नहीं भागे। उन्हें तो चन्दनबाला के पास से एक सर्प निकला। रात्रि के
अपनी साधना से मतलब रहा। किन्तु आज हम गहन अन्धकार में भी मृगावती को सूर्य के प्रकाश
अपने पूर्ववर्ती महान साधकों के जीवन वृत्त को के समान दिखाई दे रहा था। वह अपने ज्ञानालोक
जानने के लिए तरस रहे हैं । समाज और अनुयायी से सब कुछ देख रही थी। इसलिये मृगावती ने '
वर्ग के अनुकरण के लिए इनका होना आवश्यक है।
ऐसे महान साधक-साधिकाओं के जीवन का अध्यचन्दनबाला का हाथ एक ओर कर दिया। चन्दन
यन करने से सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती बाला ने इसका कारण जानना चाहा । मगावती
है। ऐसी ही महान साधिकाओं की वर्तमान युग में ने वास्तविकता प्रकट कर दी। चन्दनबाला समझ .
भी कमी नहीं रही है । किन्तु उनका भी क्रमबद्ध गई कि महासती मृगावती को केवलज्ञान की प्राप्ति
इतिहास उपलब्ध नहीं होता है । इतिहास के हो गई है । अतः वह मृगावती की स्तुति करते हुए
जिज्ञासुओं, समाज के कर्णधारों और स्वयं साधकआत्मनिरीक्षण करने लगी और इसी अनुक्रम में
वर्ग को इस दिशा में सार्थक पहल करने की आवभावनाओं की उच्चतम श्रेणी पर पहुँच कर कर्मों
श्यकता है। अन्यथा आने वाली पीढ़ी एक बहुत का क्षय कर दिया और चन्दनबाला को भी केवल- बडे तथ्य से अपरिचित रह जायेगी, ज्ञान की प्राप्ति हो गई। क्या ऐसी महान साधि- वंचित रह जायेगी। अन्य समस्त परम्पराआ काओं के उदाहरण अन्यत्र उपलब्ध हैं ?
को छोडकर केवल आचार्य श्री अमरांसह इसी अनुक्रम में यहाँ प्रातः स्मरणीया याकिनी जी म० सा० की परम्परा पर ही यदि दृष्टिपात
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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