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धर्म का समन्वय मनुष्य की हृदयगत सहज आस्था से है, तो दर्शन का सम्बन्ध मस्तिष्क की तर्क-वितर्क प्रधान बुद्धि और विचारणा से जुड़ा है।
दर्शन, धर्म की आधारभूमि है, तो धर्म, दर्शन को जीवन्त रूप प्रदान करता है। दर्शन की सुदृढ़ भूमिका पर स्थिर धर्म सदा अपनी धुरी पर गतिमान रहता है तो धर्म के रूप में अभिव्यक्त और मूर्तिमान दर्शन हर किसी को अपनी कुशलता और उज्वलता की ओर आकर्षित करता है।
प्रस्तुत धर्म और दर्शन खण्ड में अनेकानेक विद्वान् लेखकों, चिन्तकों के महत्वपूर्ण विचारों का वह गुलदस्ता प्रस्तुत है जिसमें धर्म का रम्य रमणीय स्वरूप विविध पक्षों को उजागर करता है तो दर्शन की सौरभ उन सबको मन्त्रमुग्धकारी रूप प्रदान करती है।
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