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भाषी और मधुर व्यवहारी होने से आपकी लोक- को देखकर आपके अन्तर् की करुणा सहज ही प्रियता और अधिक विकसित हो रही है। प्रस्फुटित हो जाती है। पीड़ित को देखकर आपका मा ___सेवाभावी-सेवा कार्य प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर हृदय रो उठता है । जो भी दुःखी व्यक्ति आपके || सकता। सेवा में भी अनेक कठिनाइयाँ हैं। महा- सम्पर्क में आया वह आपको जीवन पर्यन्त नहीं सती श्री कुसुमवती जी महाराज सा० की तो सेवा- भूल सकता । जहाँ तक हो सकता है आप दुःखी भावना अनुपम है। आपने अनेकानेक संत-सतियों व्यक्ति के दुःख को दूर करने का भरसक प्रयास की सेवा की है। पूजनीया गुरुणी जी श्री सोहन- करती है। कुवर जी महाराज की अन्तिम सेवा का लाभ आप अपने प्रवचनों में भी प्रायः दीन-दुखियों आपने ही लिया। माताजी महाराज श्री कैलाश- पर दया-अनुकम्पा करने पर जोर देती रहती हैं | कुवरजी महाराज की भी खूब सेवा की । वे हृदय- आपकी ओजस्वी वाणी में अक्सर मानवता का स्वर रोगी थी। विहार काल में कई बार हृदय का दर्द मुखरित होता है। आपने अपने उपदेशों के द्वारा हो जाता था। उनके सीने पर हाथ फिराते हुए अनेक स्थानों पर स्वधर्मी सहायता फण्ड, मानव आप उनके साथ धीरे-२ चलते थे। अन्तिम समय सेवा संस्था आदि की स्थापना करवाई है और में वे एक महीने तक असाध्य व्याधि से ग्रस्त रहे। प्रायः इसी प्रकार का उपदेश भी आप फरमाती उस अवधि में आपने जो सेवा की उसका वर्णन रहती हैं। नहीं किया जा सकता। एक माह तक दिन-रात प्राणी-वध न हो, इसके लिए भी आप सदैव जागकर आपने उनकी सेवा की। आप स्न्ह के
उपदेश दिया करती हैं। आपको प्रेरणा से कई वशीभूत होकर ही नहीं वरन् कर्तव्य भावना और
बार पर्व दिनों में कसाईखाने बन्द करवाये सेवा भावना से सेवा कार्य करते थे।
गये हैं। ___आपके सान्निध्य में जो साध्वियाँ रहती हैं। उनमें चाहे बड़े हों या छोटे। यदि किसी को कोई यदि आपके सामने कोई पीड़ा से कराह रहा|KC व्याधि या वेदना हो जाती है तो आप बेचैन हो हो तो आप मौन दर्शक की भाँति बैठी नहीं रह (468) उठती हैं तथा आप अपनी स्वयं की चिंता न करते सकती हैं । आप उस समय यह विचार नहीं करती हुए दूसरों के दर्द को दूर करने में लग जाती हैं। कि अभी मैं अपने कार्य में व्यस्त हूँ, बाद में इस स्वयं अपने हाथों से सेवा करती हैं। बिना किसी व्यक्ति के विषय में कुछ पूछताछ कर जो करना ग्लान भाव से आप तन-मन से दसरों की सेवा होगा कर लिया जायेगा। चाहे आधी रात ही क्योंका
न हो आप अपने काम की या नींद की चिन्ता किये करती हैं। सेवा का गुण आपको नैसर्गिक रूप से
बिना अविलम्ब उस पीड़ित व्यक्ति को पीड़ा सुनने मिला हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है।
पहुँच जाती हैं। कोई दुःखो या रुग्ण व्यक्ति आपको ___करुणा की स्रोतस्विनी- संत कवि तुलसीदास दर्शन देने के लिए बुलाता है तो आप उसकी उपेक्षा ने कहा है
नहीं करती हैं। दूसरों को प्रसन्न देखकर आपको 5 दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान । महती प्रसन्नता होती है। आपकी करुणा भावनाकार __ तुलसी दया न छोड़िये, जब तकाँघट में प्राण ।। को देखकर आपको करुणा सागर कहा जा सकता . दया करुणा की महिमा सभी धर्म गाते हैं। है। दया, करुणा, अहिंसा जैनधर्म की प्राण हैं। महा- ज्ञान और क्रिया की आराधिका-कहा हैसती श्री कुसुमवती जी म० सा० के जीवन में "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।" आपने | करुणा कूट-कूटकर भरी है। किसी भी दुःखी प्राणी दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् संयमसाधना और द्वितीय खण्ड : जीवन दर्शन
Koods00 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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