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व्यक्तित्व की विशेषताएँ
तेज से छोटे
छोटा कद, सांवला वर्ण, ब्रह्मचर्य के दीप्त मुखमण्डल, तेजस्वी नेत्र, तीखी नाक, छोटे हाथ-पैर के पंजे और पतली अंगुलियों से मिलकर एक व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है, जिसे आज सभी बाल ब्रह्मचारिणी, महाविदुषी, प्रवचनभूषण महासती श्री कुसुमवती जी म० सा० के नाम से जानते मानते और उनके पावन चरणों में अपनी श्रद्धासिक्त वंदना निवेदन करते हैं। ज्ञाना राधिका, जपसाधिका, दया और सरलता की प्रतिमूर्ति, प्रेम और वात्सल्य की देवी, विनय - विवेक सम्पन्ना, क्षमामूर्ति, मितभाषी, मधुर व्यवहारी, प्रभावक प्रवचनदात्री पू० महासती श्रीकुसुमवती जी म० सा० के विराट व्यक्तित्व की कतिपय विशेषताएँ इस प्रकार हैं
बाल ब्रह्मचारिणी - धन जन आदि पदार्थों का परित्याग कर देना इतना कठिन कार्य नहीं है जितना विषय-वासना की काली नागिन को नाथना कठिन है । बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानी एवं शक्तिसम्पन्न व्यक्ति भी इसके सामने घुटने टेकते हुए दिखाई दिये हैं । इसी कारण अनुभवी महापुरुषों ने ब्रह्मचर्य को असिधारा व्रत उद्घोषित किया है ।
मन, वचन, कर्म से जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य की विशुद्ध परिपालना एवं आराधना करता है, उसका जीवन कितना महान बन जाता है, उसके सम्बन्ध में उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है
देव दाणव गंधव्वा जक्ख रक्खस किन्नरा । बंभयारि नमसंति दुक्करं जे करंति तं ॥
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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विश्व वन्द्य भगवान् महावीर फरमाते हैं कि जो लोग दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत की परिपालना करते हैं, उनके चरणों में देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर आदि सभी शक्तियाँ झुक जाती हैं ।
ब्रह्मचर्य की शक्ति बड़ी अद्भुत है । उसके प्रभाव से विष अमृत बन जाता है । अग्नि शीतल हो जाती है। सिंह जैसे हिंसक प्राणी भी अपनी हिंसक वृत्ति छोड़कर अहिंसक बन जाते हैं । इस प्रकार ब्रह्मचर्य की महिमा अपरम्पार है । इस विषय पर जितना लिखा जाये कम है ।
पूजनीया महासती श्री कुसुमवती जी म० बाल ब्रह्मचारिणी हैं। दस वर्ष की लघु वय से ही आप साधना पथ की पथिका बनीं। इस प्रकार आप ब्रह्मचर्य की परिपालना और आराधना करती आ रही हैं ।
सरलता की प्रतिमूर्ति - सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । आपके जीवन में शान्ति, समता और सरलता का अद्भुत समन्वय है । आपका जीवन सरल ही नहीं अपितु अति सरल है । सरलता आपके जीवन का विशिष्ट गुण है । छल, कपट, प्रपंच एवं दिखावे से आप कोसों दूर रहते हैं । सत्य कहें तो आपमें बालकों सी सरलता है ।
आपके पास चाहे बालक आये, या युवक आये या वृद्ध | चाहे धनवान आये या निर्धन | आपके यहाँ सबके लिए द्वार खुला है । सबके प्रति समान व्यवहार है । आपकी सरलता सभी के द्वारा अनु
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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