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वास में मिला। उनके प्रवचन इतने ओजस्वी होते थे कि यदि किसी को नीद भी आ रही होती तो वह जाग जाया करता । महाराजश्री के ज्ञानगभित प्रवचनों को सुनकर मन मन्त्रमुग्ध हो जाता था।
___ गुरुणीजी की रुग्णता- महासती श्री कुसुमवती जी म० सा० ज्ञान-साधना और आत्म-आराधना करते हुए, साथ ही जन-कल्याण की भावना से नगर-नगर, ग्राम-ग्राम विचरण करते रहे और जिनवाणी का प्रचार करते रहे । आपके ज्ञानगभित प्रभावोत्पादक प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक क्षेत्रों के लोग अपने-अपने क्षेत्र की आग्रहभरी विनती लेकर आपकी सेवा में उपस्थित होते थे। इस कारण आप इच्छा होते हुए भी अपनी सद्गुरुवर्या के सान्निध्य में वर्षावास नहीं कर पाती थीं। किन्तु जैसे ही वर्षावास समाप्त होता आप गुरुवर्या की सेवा में पहुँच जाती थीं । वि० सं० २०२२ का चातुर्मास सद्गुरुवर्या महासती श्री सोहनकुवरजी म० सा० का जोधपुर में था और आपका चातुर्मास सादड़ी मारवाड़ में था । चातुर्मास समाप्ति के पश्चात गुरुणीजी म. सा. जोधपुर से विहार कर पाली पधार रहे थे । गुरुणीजी म० गेहट गाँव पहुँचे थे कि यकायक किसी भयानक व्याधि ने उन्हें जकड़ लिया। गुरुवर्या की अस्वस्थता के समाचार महासती श्री कुसुमवतीजी म० सा० को मिले। सद्गुरुवर्या की रुग्णता के समाचारों को सुनकर आपको हार्दिक दुःख हुआ। समाचार सुनते ही आपने ) विहार कर दिया और उन विहार करते हुए आप यथाशीघ्र सद्गुरुवर्या के श्री चरणों में जा पहुँची।
गुरुणी जी म० का स्वास्थ्य अत्यधिक नाजुक था । दस-पन्द्रह सतियाँ जी थीं। गुरुणीजी को डोली में उठाक र पाली मारवाड़ लाये । पाली पहुँचते ही उचित उपचार प्रारम्भ करवाया गया किन्तु | उससे कोई लाभ नहीं हुआ। योग्यतम चिकित्सकों और वैद्यों को दिखाकर भी उपचार कराया फिर भी कोई लाभ होता दिखाई नहीं विया । इधर चातुर्मास का समय भी सन्निकट आ रहा था। विभिन्न क्षेत्रों से महासती श्री कुसुमवतीजी म० की सेवा में चातुर्मास की विनतियाँ भी आ रही थीं। किन्तु अपनी जीवन निर्मात्री सद्गुरुवर्या को रुग्णावस्था में छोड़कर चातुर्मासार्थ अन्यत्र जाना आपने उचित ! नहीं समझा और यह चातुर्मास गुरुणीजी की सेवा में पाली में ही किया। पाली चातुर्मास में गुरुणीजी श्री सोहनकुवरजी म० सा० सहित कुल ग्यारह महासतियाँ थीं।
महासती श्री सोहनकवरजी म. सा० का स्वास्थ्य अस्वस्थ ही चल रहा था। जब से पाली 110) पधारे तब से महासती श्री कुसमवतीजी म० सा० अपनी पीयूषवर्षी वाणी से जिनवाणी की वर्षा कर भव्यप्राणियों को आप्लवित कर रही थीं।
___ गुरुणी जी का वियोग-वर्षावास के कार्यक्रम चल रहे थे । श्रावण और पर्युषण तप त्याग एवं अन्य धार्मिक कार्य पूरे ठाट-बाट से व्यतीत हुए। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी वि० सं० २०६३ के दिन असाध्य व्याधि को भोगते हुए सती शिरोमणि तपोमूति सद्गुरुवर्या श्री सोहनकवरजी म. सा० का संलेखना-1 संथारा सहित स्वर्गवास हो गया। किसी ने सत्य ही कहा है कि टूटी की बूटी नहीं है । गुरुवर्या और जीवन निर्मात्री के स्वर्गवास से शिष्या समूह में अत्यधिक शोक छा गया। ऐसी महामहिम गुणरत्नों की खान गुरुवर्या का अवसान किसको व्यथित नहीं करता। पाली की धर्मानुरागिनी जनता को भी असीम दुःख हुआ। दो दिन तक पाली का पूरा बाजार बन्द रहा। हजारों धर्मप्रेमी लोगों ने उनकी महाप्रयाण | यात्रा में भाग लिया, उनकी पाथिक देह के अन्तिम दर्शन किये और अपनी भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित की। १५०
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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50 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 668
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