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(२) वृद्धावस्था - जो श्रमण जीवन की साधना करने में बाधक हो । (३) मानव, देव और तिर्यंच सम्बन्धी कठिनाई उपस्थित होने पर ।
(४) चारित्र विनाश के लिए अनुकूल उपसर्ग उपस्थित किये जाते हों ।
(५) भयंकर दुकाल में शुद्ध भिक्षा प्राप्त होना कठिन हो रहा हो ।
(६) भयंकर अटवी में दिग्विमूढ़ होकर पथभ्रष्ट हो जाय ।
(७) देखने की शक्ति व श्रवण शक्ति और पैर आदि से चलने की शक्ति क्षीण हो जाय ।
संलेखना के सम्बन्ध में ग्रन्थ में आगे और भी अधिक विस्तार से विचार किया गया है। यहां उन बातों पर कुछ लिखना अप्रासंगिक है । इतने मात्र से ही हमारा उद्देश्य पूरा हो जाता है ।
मालवा के आंगन में - उदयपुर में महासती श्री सोहनकु वरजी म० सा० आदि अन्य सतियां जी का रहने का मूल कारण महासती श्री मदनकुँवरजी म. सा. थे । उनकी सेवा सुश्रूषा के लिए उनकी सेवा में रहना आवश्यक था ।
जब महासती श्री मदनकुँवरजी म. सा. का देहावसान हो गया तो महासती श्री सोहनकुंवर जी म. सा. ने अपनी सहवर्ती साध्वियों और शिष्याओं के साथ उदयपुर से शस्य श्यामला मालवभूमि की ओर विहार कर दिया। मेवाड़ क्षेत्र के विभिन्न ग्राम-नगरों में धर्म-प्रचार करते हुए सत्तरह अठारह महासतियों के समूह ने जिस समय मालवा की सीमा में प्रवेश किया तो इनके आगमन का समाचार वायुवेग से मालवा के विभिन्न ग्राम-नगरों में प्रसरित हो गया । जिस नगर में, जिस गाँव में सती - मण्डल के मालव-भूमि में पधारने के समाचार मिलते -- उस नगर गांव की जनता आपके दर्शनार्थ और प्रवचनपीयूष का पान करने के लिए उस ग्राम-नगर की ओर उमड़ पड़ती, जहाँ आप अपने धर्म परिवार के साथ विराजती । इस प्रकार मालवा में आपके पदार्पण ने धर्म जागृति की एक नवीन लहर उत्पन्न कर 1
मन्दसौर, जावरा, रतलाम और इनके बीच में पड़ने वाले छोटे-बड़े गाँव-नगरों को पावन करते हुए, अपने अमृत वचनों से जनता-जनार्दन को तृप्त करते हुए आप महारानी अहिल्याबाई की नगरी इन्दौर पधारीं । श्री संघ इन्दौर के विशेष आग्रह से महानती श्री सोहनकुंवरजी म. सा. ने इस वर्ष का अपना चातुर्मास इन्दौर किया । इन्दौर में उज्जैन श्रीसंघ के पदाधिकारी और कुछ धर्मप्रेमी श्रावक उपस्थित हुए थे । इन्होंने भी उज्जैन में चातुर्मास के लिए आग्रह भरी विनम्र विनती की थी । श्रीसंघ उज्जैन के अत्याग्रह, धर्म प्र ेम और विनयशीलता को देखते हुए महासती श्री सोहनकुंवरजी म. सा. ने महासती श्री कुसुमवती जी आदि कुछ महासतियों को उज्जैन चातुर्मासार्थं भेजा ।
उज्जैन एक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी है। जैनधर्म सम्बन्धी यहाँ की परम्पराएँ प्राचीन हैं । अनेक महान विभूतियों की यह कर्मस्थली रही है । आचार्यदेव श्री कालकाचार्य ने तो यहाँ इतिहास बनाया है । आचार्य सिद्धसेन दिवाकर भी यहाँ की एक महान विभूति थे । इनके पश्चात् भी यहाँ अनेक सुविख्यात जैनाचार्य रहे हैं । क्रियोद्धारक श्री धर्मदासजी म. सा. को यहीं आचार्य पद से विभूषित किया गया था । उज्जैन और जैनधर्म पर तो और भी अधिक विस्तार से लिखा जा सकता है, किन्तु यहाँ उसकी आवश्यकता नहीं है । केवल संकेत मात्र ही पर्याप्त है ।
ऐसी महान ऐतिहासिक नगरी में महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. का चातुर्मास विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ ।
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द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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