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________________ और यहीं वि० सं० १९२१ भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा के दिन पचपन दिन के संधारे के साथ उनका स्वर्गवास हुआ । फत्तूजी की परम्परा - महासती सद्दाजी की अनेक शिष्यायें हुईं। उनमें फत्तूजी, रत्नाजी, नाजी और लाधाजी ये चार मुख्य थीं । महासती फत्तूजी का विहार क्षेत्र मारवाड़ रहा और उनकी शिष्याएँ भी मारवाड़ में ही विचरण करती रहीं । आज पूज्यश्री अमरसिंह जी म० की सम्प्रदाय की मारवाड़ में जो साध्वियाँ हैं, वे सभी फत्तूजी के परिवार की हैं। आपकी अनेक शिष्याएँ भी हुईं किन्तु | सभी का परिचय उपलब्ध नहीं होता है । महासती रत्नाजी का विचरण मेवाड़ में रहा । मेवाड़ में जितनी साध्वियाँ हैं, वे रत्नाजी के परिवार की हैं । महासती चेनाजी सेवाभावी और महासती लावाजी उग्रतपस्विनी थी । इन दोनों की शिष्या परम्परा उपलब्ध नहीं होती है । शासन प्रभाविका लछमाजो - लछमाजी महासती रत्नाजी के परिवार की थीं। इनका जन्म उदयपुर राज्य के तिरपाल ग्राम निवासी रिखबचन्द जी माण्डोत की धर्मपत्नी नन्दूबाई की कुक्षि से सं १९१० में हुआ था। किसना जो और बच्छराज जी आपके भाई थे । आपका पाणिग्रहण मादड़ा ग्राम के सांकलचन्दजी चौधरी के साथ हुआ था। कुछ समय पश्चात् साँकलचन्द जी का निधन हो गया । उसी समय महासती रत्नाजी की शिष्या महातपस्विनी गुलाबकुवर जी मादड़ा पधारीं । उनके उपदेश से लछमा जी के मन में वैराग्य भावना जाग्रत हुई और वि० सं० १९२८ में भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली । वे प्रवृति से भद्र, विनीत और सरल मानस वाली थी । लछमाजी प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं । उनके जीवन की अनेक घटनाओं का चमत्कारिक वर्णन मिलता है । वि० सं० १९५६ ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या के दिन ६७ दिन के संथारे से उनका स्वर्गवास हुआ । प्रतिभापुंज रंभाजी- रंभाजी भी महासती रत्नाजी की शिष्या थीं । रंभाजी प्रतिभा की धनी थीं। उनकी शिष्या महासती नवलाजी हुईं । नवलाजी परम विदुषी साध्वी थीं। उनकी प्रवचन शैली अत्यन्त प्रभावक थी । आपकी अनेक शिष्याएँ हुईं। उनमें से पाँच शिष्याओं की कुछ जानकारी मिलती। है । महासती नवलाजी का शिष्या परिवार - महासती नवलाजी की सुशिष्या कंसुबा जी थीं । उनकी एक शिष्या हुई । उनका नाम सिरेकुंवरजी था । उनकी साकरकुंवरजी और नजरकंवरजी नामक दो शिष्याएँ हुई । महासती साकरकुंवर जी की शिष्याओं के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती है । महासती नजरकुंवरजी एक विदुषी साध्वी थीं। उनका जन्म ब्राह्मण कुल आगम साहित्य का अच्छा ज्ञान था। आपकी पाँच शिष्याओं के नाम इस प्रकार हैं(१) महासती रूपकु वरजी - ये उदयपुर के निकट ग्राम देलवाड़ा की निवासिनी थीं । (२) महासती प्रतापकु वरजी - ये उदयपुर राज्य के वीरपुरा ग्राम की थीं । (३) महासती पाटूजी - ये समदड़ी की थीं। इनके पति का नाम गोडाजी लुंकड़ था । इनकी दीक्षा वि० सं० १९७८ में हुई थी । (४) महासती चौथाजी - इनका जन्म उदयपुर राज्य के ग्राम बंबोरा में हुआ था। इनकी ससुराल वाटी ग्राम में थी । ११२ Jain Education International में हुआ था। उन्हें द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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