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___ नारी : एक आदर्श पत्नी :-पत्नी के रूप में नारी अपने पति की सहायिका, मित्र, सलाहकार और मार्गदर्शक भी होती है । अपने पितृकुल को छोड़कर वह अपने पति-कुल के प्रति मन-वचन-कर्म से 12 समर्पित हो जाती है। पति के सुख में सुख और पति के दुःख में अपना दुःख मानती है। पति और | उसका परिवार ही उसके लिए सब कुछ होता है।
यदि अतीत के इतिहास को देखें तो ऐसी अनेक सन्नारियों के नाम मिल जायेंगे जो पति-सेवा में अपना सुख मानती थीं और उसके लिए वे हर प्रकार का कष्ट उठाने के लिए तत्पर रहती थीं। ऐसी ही महान नारियों में सती सीता, महासती दमयन्ती, महारानी द्रौपदी, महासती मदनरेखा, महारानी चेलना, सती सुभद्रा आदि-आदि । इनमें से अनेक अपने पति की धर्माराधना में भी सहयोगी बनीं। इनका विवरण देना प्रासंगिक नहीं है।
इसके अतिरिक्त यहाँ यह उल्लेख करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि अनेक नारियों ने अपने पति के साथ आत्मकल्याण का मार्ग अपनाया । कुछ ने अपनी शील-रक्षा के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर दिया । राजरानी धारिणी इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
राजमति ने अपने होने वाले पति का अनुसरण कर संयमव्रत अंगीकार किया।
इस प्रकार के और भी अनेक उदाहरण आज भी मिल सकते हैं। विस्तारभय से विवरण देना उचित प्रतीत नहीं होता।
नारी : एक कुशल शासिका :-नारो जितनी सुकुमार होती है, आवश्यकता पड़ने पर वह उतनी ही कठोर भी हो सकती है । धर्म क्षेत्र में वह सुकमारता के साथ-साथ आचार पालन में दृढ़ रहती है और अपने समुदाय की साध्वियों को भी ऐसा ही आचरण अपनाने के लिए निर्देश देती रहती है । चौबीस तीर्थंकरों के साध्वी समुदाय का नेतृत्व चौबीस नारियों ने ही किया। इनकी धर्माराधना और नेतृत्व दोनों ही अद्वितीय हैं।
यदि राजनैतिक क्षेत्र में शासिका के रूप में नारी को देखते हैं तो पता चलता है कि एक शासिका के रूप में नारी पुरुष से किसी भी प्रकार उन्नीस नहीं रही, वरन् वह बीस ही प्रमाणित
प्राचीनकाल में वाकाटक वंश की रानी प्रभावती, सल्तनतकाल में रजिया सुलताना, मुगलकाल में चाँद बीबी, रानी दुर्गावती, अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों को दांतों चने चबाने वाली रानी लक्ष्मीबाई, इ (झांसी की रानी), इन्दौर की रानी अहिल्याबाई, अवध की बेगम हजरतमहल, कित्तूर की रानी चिनम्मा आदि अनेक ऐसे नाम हैं जो इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों पर अंकित हैं। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी अनेक नारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और अपना अमूल्य योगदान दिया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जब लालबहादुर शास्त्री के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने देश का के प्रधानमन्त्री के रूप में कार्यभार सम्हाला तो किसी को विश्वास नहीं था कि श्रीमती गांधी एक शासिका के रूप में नये कीर्तिमान स्थापित कर देंगी। श्रीमती इन्दिरा ने वह सब कर दिखाया जो शायद एक पुरुष शासक भी नहीं कर पाता । उनका युग भविष्य में भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय कहलायेगा। वर्तमानकाल में अनेक नारियाँ शासिका के रूप में कार्यरत हैं और वे अपने-अपने विभागों का कुशलता के साथ संचालन कर रही हैं । द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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