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महिमा का नहीं कुछ पार
- श्रीमती विमलादेवी जैन
मण्डी गीबड़वाहा (पंजाब) महासती श्री कुसुमवती की महिमा का कुछ पार नहीं, इनके गीत गुणों के गाते थकते हैं नर नार नहीं। पढ़ने लिखने में कुछ आलस, इनको है स्वीकार नहीं, ज्ञान, ध्यान, व्याख्यान, तपस्या तजने को तैयार नहीं ।
शान्ति, शील, शम, दम, संयम से कम है कोई प्यार नहीं, समिति-गुप्ति की योग-युक्ति की तजते हैं रफ्तार नहीं । कहदे कोई कुछ भी आकर करते हैं तकरार नहीं,
इनसे मधुर अधिक किसी की सुनी कभी गुफ्तार नहीं । उन्हें जमाने की बेढंगी रुचती है रफ्तार नहीं, कहते हैं यह मानव-जीवन खोने को बेकार नहीं। गया समय फिर हाथ किसी के आता बारम्बार नहीं, हिंसा, वैर, विरोध तजे बिन, मिले मुक्ति का द्वार नहीं ।
दया सत्य का, तप का, जप का होता जहाँ प्रचार नहीं, सन्त सती का प्रिय-प्रभु का, सच्चा वह दरबार नहीं । हर एक ऐसी निर्भयता की, दे सकता ललकार नहीं,
एक शेरनी जैसी सबको, सबल सुलभ हुँकार नहीं ।। • करे प्रशंसा दुनिया इनकी, इनको कुछ दरकार नहीं, प्यारा सत्य प्राण से बढ़कर सकते कभी बिसार नहीं। कभी भूलते महासती जी महामन्त्र नवकार नहीं, उससे बढ़कर-चढ़कर इनको और अन्य आधार नहीं ।
• इन्होंने अब तक किये जगत पर कम कोई उपकार नहीं, लिखने में असमर्थ लेखनी कर सकती विस्तार नहीं । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती इनकी, कम कुछ मंगलकार नहीं, उन्हें बधाई देते थकते कवियों के सरदार नहीं।
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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