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___'कुसुम' तुम सचमुच कुसुम -श्रीमती विजयकुमारी बोथरा (बी.ए.बी.एड)
मंडी गीदडवाहा (पंजाब) जैसे जैन समाज में नामी नामी सन्त महासती श्री कुसुमजी शोभित है अत्यन्त ।
दिनकर को दीपक यथा दिखलाना बेसूद 'सती कुसुम' में कुसुम के
गुण हैं सब मौजूद । जैसे होती कुसुम में भीनी-भीनी गन्ध त्याग तपस्या कुसुम' की देती परमानन्द ।
कोमलता भी कुसुम का गुण है एक महान कोमल मन है 'कुसुम' का
सचमुच सुमन समान । होता है फिर सुमन में अद्भुत-अद्भुत रूप सतियों का तो शील ही होता रूप अनूप ।
सुमन माल्य में शोभता जैसे कोई सुमन श्रमणी माला मध्य में
श्रमणी आप रतन । काव्यतीर्थ है 'कुसुम' जी न्याय तीर्थ है साथ जैन सिद्धान्ताचार्य है बहुत-बहुत विख्यात ।
महासती सोहनकंवर गुरुणी मिली महान क्यों न होती 'कुसुम' की जग में ऊँची शान ।
अनथक धर्म-प्रचारिका विरली होगी अन्य ऐसी श्रमणी से हुआ श्रमण-संघ है धन्य ।
विजयकुमारी बोथरा . अधिक कहे क्या और श्रमणी है श्री 'कुसुमजी'
श्रमणी-गण सिरमौर। कार उजाला करने एक ज्योति आई !
-कवि माधव वरक, उदयपुर ज्ञानवान गुणवान गुण की निधि हैं आप आत्म-साधना के पथ पर बढ़ी जा रही वाणी में सरसता व नम्रता की मूर्ति हैं जीवन में ज्ञान का प्रकाश बिखरा रही हृदय के भाव उद्गार होते हैं प्रकट समता का स्रोत जैसे नीर सा बहा रही साध्वी रत्न श्री कुसुमवती जी तप और त्यागमय जीवन बिता रही। धन्य है धरा मेवाड़ माटी भी अमोलक है जिस धरती पे वीर सन्त-सती जायेह धरती का मान, प्राणत्याग भी बचाया जहाँ मान-मर्यादा हित प्राण भी गंवाये हैं पन्ना, पदमण, मीरा, नारियाँ जहाँ पे हुई कुसुमवती जी साध्वी सी लख पाये हैं सफल किया है, निज जीवन भी धन्य हुआ प्रतिभा के कानन में फूल सरसाये हैं। उन्नीस सौ पच्चीस का महिना सितम्बर व तारीख थी सात शुभ घड़ी ऐसी आई थी पिताश्री गणेशलाल कोठारी के घर में करने उजाला एक ज्योति चल आई थी कैलाशकुंवर मात धन्य हुई उस दिन कुसूमवती सी कन्या निज गोद आई थी नवल-प्रभात की ही भला दहलीज पर आशा की किरण पहली बार मुस्काई थीं।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
200 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थOOG)
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