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किस विध-नमन करु -श्री भंवरलालजी चपलोत, नाथद्वारा
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किस विधि तुमको नमन करू तर्पण करू सारे अवगुण या, संयमी बन तव गुणगान करूँ
तुम
महासती जी! कुमुमवती जी! तुम्हीं बताओ किस विध तुमको नमन करूं? चरण पखारूँ उपमाओं से या श्रद्धा सुमन अर्पन करूं?
तुम शान्त जैसे ठहरा जल हो 'मुखर' जैसे खिला कमल हो ज्योतिर्मय तुम साधना में लीन अध्यात्मयोगिनी हो
ममतामयी जैसे, अनुरागी माँ हो करुणामयी जैसे स्वयं कृपा हो सदाचारी तुम बहुभाषा विद् प्रवचन भूषण हो
ओ,
प्रवचन भूषण ! तुम्हीं बताओ किस विधि तुमको नमन करू अर्पण करूं सारे गीत या कविता लिख अभिनन्दन करूं ।
ओ,
अध्यात्मयोगिनी ! तुम्हीं बताओ किस विधि तुमको नमन करूं अर्पण करू सारा जीवन
या, साधना में रमन करू तुम, दृढ़ संकल्पी जैसे अडिग हिमालय हो मधुमयी वक्ता जैसे बहता सरिता सलिल हो 'संयमी' तुम पंच महाव्रतधारी पंच शीला हो
'अभिलाषा'
-वनिता चपलोत, बी. ए. नाथद्वारा मेरी अभिलाषा, कि, तुम, थाम पतवार, बनो खिवैया, युग-दृष्टा बनो, बनो राष्ट्र-धर्म उन्नायक, यही कामना, कि, तुम, दीर्घायु हो, तव पल-पल बीते, 'शांत' किसी ध्यानस्थ योगो सा 'सूरभित' किसी वासन्ती सुमन-सा, 'निलिप्त' किसी नीलकमल-सा,
ओ
पंचशीला तुम्हीं बताओ
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
dG.
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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