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जिन शासन की ज्योति
भूमिका निभा रही हैं। इस प्रकार आपका जीवन -खबीलाल खोखावत, डबोक आत्म-कल्याण व जन-कल्याण में संलग्न है । वास्तव परम श्रद्धया शान्त. दांत. गणगम्भीरा महा- में आपका जीवन अभिनन्दनीय है। शासनदेव से गुरुणी श्री सोहन कुवर जी म० की प्रथम व विद्वान ।
प्रार्थना है कि आप इसी प्रकार जिन शासन एवं शिष्या पूज्या गुरुणी जी श्री कुसुमवती जी म० का
संघ की दीर्घकाल तक सेवा करते रहें। इन्हीं शुभ-70 हमारे डबोक गांव पर बड़ा उपकार रहा है, आपका
कामनाओं के साथ..."। सर्वप्रथम चातुर्मास सन् १९५७ में डबोक हुआ। उस
यथानाम तथागुण समय आपकी मधुर व ओजस्वी वाणी से संघ में
-कमला माताजी, इन्दौर काफी उत्साह आया, श्रावक संघ की स्थापना के साथ आपकी प्रेरणा से जैन धार्मिक विद्यालय
नामकरण तो बहुत सुन्दर-सुन्दर वाक्य की संस्थापना हुई और यह विद्यालय आज भी रचनाओं से करना मन को अति प्रियकारी लगता निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आपकी प्रेरणा है, लेकिन गुणों के अभाव में वह कागजी फूलों के ||K5) से स्थान स्थान पर अनेक सामाजिक व धार्मिक समान ही सुगन्धविहीन ऊपरी सुन्दरता का धारका रचनात्मक कार्य होते रहते हैं। आप स्थानकवासी होता है। सुगन्धयुक्त रसपान करने वाला भ्रमर जैन समाज की प्रतिभा सम्पन्न साध्वी रत्न हैं। निराश होकर लौट जाता है, लेकिन यहाँ तो यथा आपकी ही भाँति आपका शिष्या परिवार भी तेजस्वी नाम तथा गुणोंयुक्त पूज्य महासतीजी श्री कुसुमहै। दीक्षा स्वर्ण जयन्ति के इस पावन अवसर पर वतीजी म. सा. का दीर्घकालीन साधनामय जीवन मैं तथा समस्त श्रावक संघ के सदस्यों की ओर से ज्ञानदर्शन चारित्र युक्त सौरभ को धारण किये हुए 5 आपके चरणारविन्दों में कोटिशः वन्दन करता हुआ तो है ही, लेकिन चिन्तन की धाराएँ भी अत्यन्त जिनशासनदेव से यही मूक प्रार्थना करता हूँ कि गहरी हैं। जिस प्रकार भ्रमर अनेक फूलों के रसों
आपका स्वास्थ्य सदा स्वस्थ रहे और सदा हमें को ग्रहण कर उन्हें संग्रहीत करता है और वे रस (6) सप्रेरणा व आशीर्वाद प्रदान करते रहें जिससे हम कालान्तर में शहद के रूप को धारण कर लेते हैं, धार्मिक व सामाजिक कार्यों में अपना योगदान शहद शक्तिवर्धक/व्याधि निवारक आदि अनेक गुणों देते रहें।
से युक्त होता है । ठीक उसी प्रकार पूज्य महासती 5 सहज-सौम्य व्यक्तित्व
जी ने अपने चिन्तन युक्त शहद का पान करवाक -अमरचन्द मोदी, ब्यावर जन-जन के कर्म व्याधियों को दूर किया हैं, भव - महापुरुषों के गुणों का वर्णन करना सहज काय भ्रमण करते हुए भूले-भटके प्राणियों को कर्म और नहीं है। परमपूज्य महासतीजी श्री कुसुमवतीजी आत्मा का स्वरूप समझाकर अपने स्वरूप को प्राप्त म. सा. उन विशिष्ट नारीरत्नों में से एक हैं, जिनका करने के लिए मार्गदर्शन किया है। जहाँ कथनी जीवन निर्मल व महान् तथा अन्य सभी के लिए और करनी में समानता होती हैं, वे ही आत्माएँ प्रथप्रदर्शक के रूप में है। उनके उज्ज्वल चारित्र स्वयं संसार सागर से पार होती है और अन्य को की ज्योति साधना पथ पर बढ़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति भी पार करवाती है । ऐसी गुण सम्पन्ना पूज्य महामा के लिए प्रेरणास्रोत है।
सतीजी श्री कुसुमवतीजी म. सा. के अभिनन्दन की आप श्रमण संघ की वाटिका को निरन्तर शुभ बेला पर श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ । शत-शता शोभित कर रही हैं। आपकी छत्र-छाया में रहकर वन्दन-अभिनन्दन युक्त । अनेक शिष्याएँ आज धर्म की प्रभावना में महत्वपूर्ण प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 000
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