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आपकी साधना एवं आराधना तथा धार्मिक
वन्दना के स्वर ज्ञान-ध्यान-तप-संयम की सौरभ से प्रभावित हो
-श्रीमती प्रमिला मेहता, एम. ए., बी. एड. आपकी शिष्या प्रशिष्या भी कोई कम चमकते हमारे परिवार में सम्वत् १९८२ को एक प्रकाश सितारे नहीं हैं । सतीश्री चारित्रप्रभाजी, श्री दिव्य- किरण का पदार्पण हआ। वह किरण मात्र किरण न ॥ प्रभाजी, श्री गरिमाजी आदि के संयमनिष्ठ जीवन रहकर प्रका बन गई। जिसने केवल घर में ज्ञान-ध्यान तप-संयम की आराधना तथा सम्मानित ही नहीं, सम्पूर्ण जगत् में धर्म का प्रकाश फैलाया। उपाधियाँ, विद्वतडिग्रियों का कहाँ तक उल्लेख किया हम सबको हमारे परिवार से निकली इस अलौकिक जावे, अद्वितीय है। यथानाम तथागुणों से भी सभी ज्योति पर गर्व है। वह ज्योति है-परम विदुषी सम्पन्न विभूतियाँ हैं जिनकी महिमा अत्यन्त महत्व- साध्वीरत्न श्री कसमवतीजी म.। शाली है। आपकी ममेरी बहिन श्री दिव्यप्रभा जी आपने अपनी मातेश्वरी श्री कैलाशकु वरजी भी आपके पास ही दीक्षित हैं-आपने अच्छा ज्ञाना- महाराज के साथ दीक्षा-ग्रहण की। श्री कैलाश- a जन किया है और आप जैन जगत की एक दीप्त- कवरजी महाराज मेरे पिताश्री यशवन्तसिंहजी
मान अलौकिक सती हैं-ऊपर की पंक्तियों में सियाल की भआजी तथा मेरे दादाजी श्री कन्हैया- ८ CH आपका उल्लेख आया हुआ है।
लालजी सियाल की बहिन थीं। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के शुभ प्रसंग पर शत-शत
पूज्य कैलाशकुवरजी महाराज आज हमारे
मध्य नहीं रहे । लेकिन अपनी अमूल्य धरोहर पूज्य वन्दन करते हुए आपश्री की दीर्घ आयु की शुभ
श्री कुसुमवतीजी महाराज को समाज को समर्पित कामना करता हूँ साथ ही शासनेश से प्रार्थना है
कर गई है। कि सती श्री के जीवन से जैन समाज को आलोक
पूज्य कुसुमवतीजी महाराज ने भगवान महाएवं सन्मार्ग प्राप्त होता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के ।
वीर के पथ पर अग्रसर होकर ज्ञान, ध्यान, तप, साथ शत-शत वन्दन, अभिवन्दन एवं अभिनंदन ।
शील, सदाचार आदि की कठिन साधना की। हे श्रमण संस्कृति के दिव्य रत्न,
उनका जैसा नाम है 'कुसुम' उसी के अनुरूप ही वे न
अपनी सुरभि फैला रही हैं। जिस प्रकार फूल की तुम अवनितल पर चमको।
सुगन्ध से आकर्षित होकर भंवरे बिना बुलाये ही || जैन जगत के दिव्य भाल पर---
फूल पर मंडराते हैं ठीक उसी प्रकार आपके गुण चन्द्र सूर्य सम दमको ॥ सौरभ से आकर्षित होकर अनेक लोग आपके भक्त का
बन गये हैं।
__ श्रमणसंघ के क्षितिज पर इस ज्योतिपुन्ज चंद्र के जैन जगत के लिये आपश्री
साथ अनेक सुशोभित सितारे भी उदित हुए हैं। 28
उनमें से एक हैं-पूज्याश्री दिव्यप्रभाजी जो संसारमंगलमय वरदान बनो।
पक्षीय मेरी भुआ है। उन्होंने आपके पावन सान्निध्य श्रावक जन सब करें कामना
को प्राप्त कर अपना जीवन उज्ज्वल बना लिया। जैन जग के भव त्राण बनो। वे राजस्थान विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए.
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हैं तथा जैनाचार्य सिद्धर्षि की महत्त्वपूर्ण कृति 'उपमिति भव प्रपंच कथा' पर Ph. D. की उपाधि प्राप्त हैं। वे अपनी दिव्य आभा से संसार को आलोकित कर रही हैं।
एवं
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 25-50 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 606
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