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________________ सागर वर गम्भीरा संस्कृत, अधमागधी, हिन्दी आदि भाषाओं पर आपका अच्छा अधिकार है। यही कारण है कि -पदमचन्द जैन, आज आपका सतीवर्ग विद्वान ही नहीं, आगमों में, दिल्ली दर्शन (दार्शनिक-अध्ययन) में, चिन्तन मनन में और साध्वी चर्या के प्रति पूर्ण जागरूक है। नदियाँ अपना नीर स्वयं नहीं पीतीं, वृक्ष अपने समस्त स्थानकवासी समाज को ऐसी विदुषो, फल स्वयं नहीं खाते। इनका नीर या फल-फूल सभी कुछ दूसरों के लिए ही होता है। इसी प्रकार सरल-आत्मा एवं कर्तव्यपरायण महासतीजी के सान्निध्य के नाते, श्रद्धावनत होकर बधाई प्रेषित संत भी परोपकार के लिए अपना सौरभ यत्र-तत्र सर्वत्र बिखेरते चलते हैं । वे जहां जाते हैं, अपने तप . __ करते हुए, शासन की प्रभावना हो, संयम के प्रति संयम की अभिवृद्धि करते हैं और अहिंसा, सत्य, निष्ठा एवं जागरूकता बनी रहे और भव्य-जीव सदा-सदा प्रतिबोध पाकर आत्म-कल्याण करते अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह रूप भगवान की । वाणी का अमृत पान कराते चलते हैं। उनके रहें । ऐसी कामना करता हूँ। जीवन का उद्देश्य ही प्राणीमात्र का कल्याण करना और आत्म-वैभव से सम्पन्न होना और सुमनाञ्जलि कराना ही होता है। -रणजीतसिंह सियाल, महासती श्रीकुसुमवतीजी महाराज का व्यक्तित्व उदयपुर अत्यन्त सहज और सरल है । भोलापन और आत्मीयता से ओत प्रोत है। करुणा से भरपूर है। __ मैंने कभी कोई लेख लिखा नहीं लेकिन आज आँखों में ज्ञान की एक अजीब सी गहनता है। । अन्तर हृदय की भावना कुछ लिखने को प्रेरित कर दूरदर्शिता से सम्पन्न है। गुण ग्राह्यता के साथ . में रही है । महासती कुसुमवतीजी मेरी भुआजी की ५ क्षमा-शान्ति का अद्भुत मिश्रण है। सबके प्रति पुत्री, बहन है। सम्माननीय भाव रखना आपकी स्वाभाविक गरिमा बचपन में उनके सुन्दर संस्कार और उनका असीम वात्सल्य मुझे मिला। मेरे पूज्य पिताश्री वट का बीज चाहे छोटा ही होता है परन्तु कन्हैयालालजी सियाल जिनका जीवन सिद्धान्तउसमें एक विशाल वृक्ष की सत्ता है उसी प्रकार परक और नीतिनिष्ठ था। मेरी पूजनीया मातेश्वरी महासतीजी का शारीरिक संस्थान चाहे बाह्य दृष्टि चौथबाई जो धर्मनिष्ठ श्रद्धालु श्राविका थीं जिनके से विशालता प्राप्त नहीं है, विशेष सशक्त भी नहीं जीवन के कण-कण और मन के अणु-अणु में धर्म दिखता, परन्तु आपका आत्म-विश्वास, ज्ञान का की भावना बहती थी। मेरे पिताश्री की बहिन MOR वैज्ञानिक विश्लेषण एवं तप-संयम की निष्ठा सोहनबाई का विवाह देलवाड़ा किया। वे उदयपुर IKES प्रशंसनीय है। व्यक्ति को पहचानने की आपकी गोद आये थे। उनके एक लड़का और एक लड़की क्षमता अद्भुत है तथा विशाल है इसीलिए महासती दो सन्तान हुई । शादी को पाँच वर्ष ही हुए थे कि जी के चरणों में आने वाला कोई भी व्यक्ति भरी जवानी में २१ वर्ष की उम्र में वे विधवा हो वत हुए बिना नहीं रह सकता । गई थीं। लडका भी मर गया। विपत्ति पर विप___महासतीजी का आगमिक अध्ययन तथा त्तियाँ आयीं । मेरे पिताश्री उनको पीहर ले आये । दर्शन शास्त्र पर पर्याप्त अधिकार है। प्राकृत, सोहनबाई अपनी पुत्री नजर के साथ पोयर में प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना T ७७ ॐ06-0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Geo Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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