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परम ज्ञान साधिका
- नाथूलाल माद्रेचा
परमादरणीया साध्वीरत्न श्री कुसुमवतीजी म. स्थानकवासी जैन समाज की विदुषी साध्वी हैं । मेरा आपसे परिचय बहुत पुराना है। किसी भी साधनामय जीवन का गुणानुवाद करना भी भाग्य - शाली को हो प्राप्त होता है, आपका व्यक्तित्व असीम और अपरिमित है । आपके मधुरिमापूर्ण व्यक्तित्व को निहारकर दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता। आपने संयम और तप की साधना से अपने जीवन को पवित्र किया है। आपके मार्गदर्शन मे जनता को सुख शान्ति की राह उपलब्ध हो रही है | आपका नाम कुसुम है, कुसुम की सदा यह विशेषता रही है कि वह खिलता रहता है। चाहे मित्र या दुश्मन जो भी उसके समीप पहुँचता है वह सदा अपनी सुगन्ध सुवास देता ही रहता है, कभी भी उसमें दुर्गन्ध नहीं आती है ।
आपका पवित्र जीवन एक प्रकाश स्तम्भ की तरह है, जो जन-जन को मार्गदर्शन कराता है । आपकी वाणी में तेज है, ओज है और उसमें चिन्तन का गाम्भीर्य है । जहाँ भी आप पधारों वहाँ की जनता को एक नया मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन अवसर पर मैं अपनी ओर से एवं श्रावक संघ ढोल की ओर से हार्दिक अभिनंदन करता हुआ शासन देव से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप सदा स्वस्थ रहें और हमें सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देते रहें ।
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गुणवान व्यक्ति का वचन घी से सींची हुई यज्ञाग्नि की भाँति तेजस्वी और प्रभावकारी होता है, जबकि गुणहीन व्यक्ति का कथन, तैलरहित दीपक की भाँति तेजोहीन !
- आचार्य जिनभद्र गणो
बृह. भा. २४५
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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शत-शत प्रणाम
- सुरेन्द्र कोठारी, उदयपुर
परमादरणीया साध्वीरत्न श्री कुसुमवतीजी म. का जीवन कुसुम-सा कोमल व पवित्र है । आपके जीवन में सरलता सादगी, नम्रता, विनय, ज्ञानध्यान हैं। आपके पावन जीवन दर्शन से हम युवक-युवजप, स्वाध्याय आदि के अनेकानेक गुण विद्यमान तियों को भी मार्गदर्शन मिलता रहता है । आपकी तरह आपकी शिष्या परिवार भी ओजस्वी तेजस्वी व प्रभावशाली है, हमें गौरव है कि हमारी स्थानकवासी जैन समाज में आज भी ऐसी विदुषी साध्वीरत्न विद्यमान हैं, दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन अवसर पर हम सभी वर्धमान पुष्कर जैन युवा मंच के साथीगण आपका हृदय से शत-शत अभिनन्दन वन्दन करते हुए वीतराग प्रभु यही प्रार्थना करते हैं कि आप सदा स्वस्थ रहें, दीर्घायु रहें व हमें मार्गदर्शन प्रदान करते रहें ।
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मंगलकामना
- डी. सी. भाणावत, प्राचार्य
महासती कुसुमवतीजी के अत्यल्प सान्निध्यलाभ ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया - पांडित्य प्रदर्शन या उपदेश - प्रवृत्ति से नहीं, बल्कि आत्मीयतापूर्ण सरल व्यवहार से । आँखें ऐसी मानो स्नेहनिर्झर हों और सहज मुस्कान तो मानती ही नहीं मुंह- पत्ती का भी बन्धन ।
उनकी करणी में ओज की गरिमा, वाणी में दिव्य माधुर्य और भावना में अनुपम प्रसाद स्वतः ही प्रस्फुटित होता रहता है । सम्यक्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की त्रिवेणी प्रवाहित करती हुई उनकी करी साधना शतायु हो, यही हमारी मंगलकामना है ।
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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