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________________ प्रेरणा स्रोत निर्मल बनने के साथ-साथ अनेक साध्वीवृन्द के || लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा। -रतनलाल मारू, मदनगज धर्म की प्रभावना हेत इनकी विशेष रुचि रही। परम विदुषी साध्वीरत्न श्री कुसुमवती जी इसी कारण आपने सदैव परम्परागत क्षेत्रों का ! म० स्थानकवासी जैन परम्परा की एक महान मोह त्याग कर दूर-दूर तक विहार किया। जिसके साधिका हैं । आपके जीवन में हजारों हजार विशे- फलस्वरूप जम्मू, पंजाब, उत्तरी भारत के अनेक षताएँ हैं जिसे मैं लिखने में असमर्थ हूँ। क्षेत्रों को आपकी वाणी का लाभ प्राप्त हुआ और राजस्थान की पावन पुण्य धरा नर रत्नों की उनमें धर्म के प्रति विशेष रुचि जागृत हुई। जन्मभूमि रही है, इस पावन धरा में आध्यात्मिकता 4 के बीज समाए हुए हैं। यहाँ पर अनेक नरवीर और कृतज्ञता ज्ञापन दानवीर हुए हैं तो अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है जिनकी पावन वाणी से हजारों नर-नारियों ने -प्रकाशचन्द संचेती, जयपुर आत्म-कल्याण किया है। इसी पावन माटी में परम विदुषी, साध्वीरत्न, अध्यात्मयोगिनी, पूजनीया साध्वीरत्न श्री कुसुमवती जी म. का कुसुमवती महासतीजी के दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के | जन्म हआ है। आपने बाल्यकाल में ही सयम सुअवसर पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ पर अपने श्रद्धा । अंगीकार कर शिक्षा के क्षेत्र में एक कीर्तिमान समन अर्पित करते हए, आपके दीर्घायु जीवन की ४ स्थापित किया है। शिक्षा के साथ आचार धर्म का मनोकामना करता हैं। भी आपने उत्कृष्ट पालन किया है। आपके द्वारा आपश्री का स्थानकवासी जैन समाज पर कइयों का उद्धार हुआ है। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के . __ असीम उपकार है। आपके गरिमामय व्यक्तित्व कर पावन अवसर पर मैं अपनी ओर से और वर्तमान से सभी सुपरिचित हैं। स्थानकवासी जैन श्रावक संघ मदनगंज की ओर से आपका हार्दिक वंदन, अभिनंदन करता हूँ एवं वीत आप स्वयं अत्यन्त आत्मद्रष्टा साधिका हैं। रागदेव से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप सदा __ आपकी अत्यन्त बुद्धिशालिनी संवर एवं साधना पथ स्वस्थ रहकर हमें मार्गदर्शन प्रदान करते रहें ताकि पर चल रही विदुषी शिष्याएँ हैं। जिनमें प्रमुख हम अपने जीवन को समाज व धर्म के क्षेत्र में सदा साध्वी श्रीचारित्रप्रभाजी, साध्वी श्रीदिव्यप्रभाजी लगाए रखें। M.A. Ph.D., साध्वी श्रीगरिमाजी M.A. आदि का ज नाम लिखे बिना सच्ची श्रद्धार्चना नहीं हो सकती। साध्वीरत्न श्री कुसमवती जी ___ आपश्री ने आपके सुगुरु श्रमण संघीय उपाध्याय श्रीपुष्करमुनिजी महाराज सा. के नाम को और ६ -शान्तिलाल पोखरना, भीलवाड़ा दैदीप्यमान किया है। मुझे जानकर प्रसन्नता हुई कि परम विदूषी आप अध्यात्मसाधिका हैं, कमल के समान साध्वीरत्न श्री कुसुमवती जी म. सा. की दीक्षा निर्लेप आपका जीवन है। आपको समीप से देखने का के ५० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ अवसर कई बार मिला है आप उच्चकोटि की का प्रकाशन किया जा रहा है। यह उनका केवल साधिका हैं। मैं आपके संयमी-स्वस्थ दीर्घायुष्य की अभिनन्दन ही नहीं बल्कि संयमी जीवन का अभि- कामना करता हूँ। नन्दन है। जिससे उनका भविष्य और अधिक ७२ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना । को 30. साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Elation International SarparatealDarsonaloodily www.jainelibrary
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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