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वर्द्धमान महावीर को, हम सबका प्रणाम । वीतराग पद प्राप्त कर पाये आठों याम ॥ ( २ )
श्रद्धा सुमनाञ्जलि
संघ नायक आनन्द हैं, श्रमण संघ की शान । उपाध्याय पुष्कर गुरु, चमके भानु समान || ( ३ ) भावीनायक शास्त्रीजी, उपाचार्य देवेन्द्र | श्रमण संघ में शोभते, ज्यों तारों में चन्द्र ॥ ( ४ ) गुरुणी जी श्री सोहन को, नित्य नमाऊँ शीश । श्रमण संघ प्रवर्तिनी का, फल रहा आशीष ॥ ( ५ ) शासन ज्योति महासती, कुसुमवती महाराज | अभिनंदन वंदन करें, शीश झुकाकर राज ॥ ( ६ ) वीरभूमि मेवाड़ में उदयपुर की शान । जहाँ जन्मे हैं आपश्री, पिता गणेश महान ॥
( ७ )
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बालपने शिक्षा मिली, वैराग्य लिया अपनाय । मात सहित संयम लिया, देलवाड़ा के माँय ॥ (5) साल उन्नीसो तराणू, फाल्गुन सुदि तेरस । धन्य हुई शुभ दिन घड़ी, पाया ज्ञान का रस ॥ (ε) सोहन के शुभ चरण में, अर्पित हो गई आप । पात्रता शुभ देखकर ज्ञान दिया अमाप ।। ( १० ) पुष्कर गुरुवर की रही, अनुकम्पा हर बार । वीतराग शुद्ध धर्म को, ले लिया दिल में धार ॥ ( ११ )
सरल हृदय है आपका, सहज सरल सुविचार | सहनशील मध्यस्थता, मधुर रहा व्यवहार ॥ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
- राजेन्द्र मेहता सायरा ( १२ )
विनय धर्म का मूल है, विनय धर्म आधार । विनयवन्त हैं आपश्री, विनय आत्म का सार । ( १३ ) अल्पवय में आपने किया प्राकृत, हिन्दी, संस्कृत, न्याय ( १४ ) कोकिल कण्ठा मधुर वचन, मधुर रहा व्याख्यान । श्रोताजन हर्षित रहे, सुन-सुन मंगल गान ॥ ( १५ )
खूब अभ्यास ! व्याकरण खास ।।
ज्ञानध्यान वैराग्यमय, तप-जप अरु जीवन के ये अंग हैं, आत्मा का ( १६ ) स्वाध्याय अरु साधना, जोवन के दो पक्ष । आत्मा को उन्नत किया, सदा रहा यह लक्ष्य ॥ १७
शिष्या समूह सब सरस है, ज्ञानवान मतिमान || बाल ब्रह्मचारिणी सभी, करते आत्मकल्याण ॥ ( १८ ) परमविदुषी महासती, चारित्रप्रभा गुणवान । दिव्यप्रभा अरु गरिमाजी, शिष्या आपकी जान ॥ ( १६ )
प्रशिष्या दर्शनप्रभा जीवन संयम जान । विनयप्रभा और रुचिका, कर आत्मउत्थान ॥ ( २० )
अनुपमा और राजश्री, प्रतिभा बढ़े अपार । निरुपमा आदि सती, बारह का परिवार ॥ ( २१ ) अभिनन्दन है आपका, सदा रहें सुस्वस्थ । शासन की सेवा करें, धर्म ध्यान में व्यस्त || ( २२ ) स्वर्ण जयन्ती वर्ष पर, राजेन्द्र के उद्गार । सर्व सुखी संसार हो, घर-घर मंगलाचार ॥
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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स्वाध्याय | व्यवसाय ॥
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