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All आचरण किया जाता है। परम विदुषी, साध्वी
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व रत्न, वन्दनीय कुसुमवती जी महाराज एक ऐसी परम तेजस्वी साधिका हैं, जिन्होंने मोह, ममता,
-सम्पत जैन, दिल्ली अहंकार, क्रोध, राग, द्वेष आदि विकार भावों पर विजय प्राप्त कर साधना के कण्ट काकीर्ण पथ को
परम विदुषी साध्वी रत्न महासती श्री कुसुमअगाकार किया। साधना ही उनका साध्य है और वतीजी म० का व्यक्तित्व एक महान प्रतिभाशाली वह ऐसा साध्य है जो भौतिक साधन निरपेक्ष है। रहा है । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन अवसर पर आपकी साधना दिखावे के लिए नहीं, अपित आत्म आपके श्री चरणों में एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित
कल्याण के लिए है । आत्म कल्याण भी ऐसा जो किया जा रहा है । इस मौके पर मुझे कुछ संस्मरण ।। प्राणी कल्याण की अपेक्षा रखता है।
याद आ रहे हैं जो ११ वर्ष पूर्व के हैं, जब आपश्री
का चातुर्मास दिल्ली चांदनी चौक में था, मुझे भी सतत् साधना के परिणामस्वरूप आपका मुख भी उस चातुर्मास में एक बार लाला मुन्नालालजी मण्डल तेजस्विता से परिपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता की धर्मशाला में आपके दर्शन प्राप्त हुए थे, मैंने in है कि आप तेजस्विता की साक्षात् मूर्ति हैं । स्वभाव पाया कि आप स्वभाव से मधुर, मिलनसार, प्रसन्न
की सरलता, वाणी की मृदुता और हृदय की बदना, सही मार्ग-प्रदर्शक एव सरलता की प्रतिविशालता के अद्भुत सामजस्य ने आपके आभायुक्त मूति हैं। मख-मण्डल की तेजस्विता को द्विगुणित किया है। मैंने आपके ओजस्वी प्रवचन सने जो कि शास्त्र. सहज गुणों के कारण स्वाभाविक भावों में वृद्धि म
__सम्मत और अनुभवों से परिपूर्ण थे। प्रकृति की देन है। आपकी वाणी में विलक्षण ओज
आपकी शिष्या मण्डली बड़ी भाग्यशाली है है जिसका प्रभाव आपकी वाणी को सुनने वाले पर अवश्य पड़ता है। आपकी वाणी की मधुरता,
जिसे आप जैसी गुरुणीजी की छाया मिली। आप
स्वयं तो जप-तप-स्वाध्याय-ध्यान इत्यादि में लगी । मृदुता और ओजस्विता के कारण आपके प्रवचन इतने प्रभावशाली होते हैं कि वे लोगों के हृदय को
ही रहती हैं, अपनी शिष्याओं को भी खाली नहीं
रहने देती। छू लेते हैं और अपेक्षित प्रभाव डालते हैं।
हे स्वनाम धन्य ! कसमवतीजी आप एक प्रखर __ आपके ज्ञान में गम्भीर्य और चिन्तन में गह- वक्ता के रूप में व दृढ़ सेवाभावी विदुषी साध्वी के राई है। करीतियों और अन्धविश्वासों को आप के रूप में प्रसिद्ध हैं। मितभाषी, अध्ययनशील, प्रबल विरोधी हैं। यही कारण है कि आपके प्रव- जनोपयोगी साहित्य के निर्माण में संलग्न महासती चनों में सामाजिक बुराइयों के प्रति प्रबल कटाक्ष जी के विराट व्यक्तित्व को मेरा शत-शत प्रणाम ! एवं विरोध होता है। आपके प्रवचनों से प्रभावित
होकर अनेक लोगों ने अपने जीवन को सुधार कर -- * सन्मार्ग पर लगाया है।
मन्द कषायी (भव्य) आत्मा के तीन
लक्षण हैं___आप जैसी परम तेजस्वी विदुषी साधिका के
सब जगह प्रिय वचन बोलना, दुर्वचन प्रति नतमस्तक हो आपके चरणों में अपने श्रद्धा
बोलने वाले को भी क्षमा कर देना, सव के गुण सुमन अर्पित करता हूँ।
ग्रहण करना- -कार्तिकेय अनुप्रेक्षा ६१
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RE-RE
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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