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________________ केवलज्ञान की दिव्यप्रभा में गौतम स्वामी ने सर्वत्र विचरण किया। अनुभूति पूर्ण धर्मदेशना के माध्यम से सहस्रों आत्माओं को प्रतिबोध देकर सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करते रहे। महावीर - शासन को उद्योतित करते हुए तीर्थ को सुदृढ़ और सबल बनाया। गौतम स्वामी भगवान् महावीर के १४००० साधुओं, ३६००० साध्वियों, १५९००० श्रावकों और ३१८००० श्राविकाओं के एवं स्वयं तथा अन्य गणधरों की शिष्य परम्पराओं के एकमात्र गणाधिपति, संवाहक और सफल संचालक होते हुए भी सर्वदा निःस्पृही निरभिमानी एवं लाघव सम्पन्न हो रहे अन्त में, भगवान् के शासन की एवं स्वयं के शिष्य परिवार की बागडोर अपने ही लघुभ्राता आर्य सुधर्म को सौंप दी। यही कारण है कि भगवान् के प्रथम पट्टधर शिष्य एवं प्रथम गणधर होते हुए भी महावीर की परम्परा गौतम स्वामी से प्रारम्भ न होकर सुधर्म स्वामी के नाम से आज भी अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। केवली होने के पश्चात् वे १२ बारह वर्ष तक महावीर वाणी को जन-जन के हृदय की गहराइयों तक पहुँचाते रहे। महावीर की यशोगाथा को गाते रहे और शासन की ध्वजा को अबाधित रूप से फहराते रहे। गौतम स्वामी अपनी देह का विश्व के समस्त जीवों के कल्याण के लिये निरन्तर उपयोग करते रहे। बाणवें वर्ष की परिपक्व अवस्था में उन्होंने देखा कि देह - विलय का समय निकट आ गया है, तो वे राजगृह नगर के वैभारगिरि पर आये और एक मास का पादपोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया। अनशन के अन्त में देह त्याग कर गौतम स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया। गौतम की आत्म ज्योति, भगवान् महावीर और अनन्त मुक्तात्माओं की ज्योति में सदा के लिये मिल गई। महावीर के तुल्य, एकार्थ और विशेषता रहित बनकर प्रभु की वाणी को चरितार्थ कर दिया । इस प्रकार गौतम स्वामी ५० वर्ष गृहवास में, ३० वर्ष संयम पर्याय में और १२ वर्ष केवली पर्याय में कुल ९२ वर्ष की आयु पूर्ण कर ईस्वी पूर्व ५१५ में अक्षय सुख के भोक्ता बनकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। गौतम स्वामी के नाम की महिमा गौतम गणधर जीवन-साधना, योग-साधना और मोक्ष-साधना कर विश्व के कल्याणकारी साधक बन गये। उनकी अनुपम साधना महावीर शासन की परम्परा के लिये अनुकरणीय एवं आदर्श बन गई। उनकी प्रशस्त साधना और गुणों को देखकर जहाँ श्रमण केशीकुमार जैसे आचार्य "संशयातीत सर्वश्रुतमहोदधि" कह कर विद्वत खण्ड / १२४ Jain Education International अभिवन्दन करते हैं वहीं शास्त्रकार " क्षमाश्रमण महामुनि गौतम " एवं "सिद्ध, बुद्ध, अक्षीण महानस भगवान् गौतम" कहकर नमन करते हैं। परवर्ती आचार्यगण तो इन्हें "समग्र अरिष्ट / अनिष्टों के प्रनाशक, समस्त अभीष्ट अर्थ / मनोकामनाओं के पूरक, सकल लब्धि-सिद्धियों के भण्डार, योगीन्द्र, विघ्नहारी एवं प्रातः स्मरणीय मानकर गौतम नाम का जप करने का विधान करते हुए उल्ल हृदय से गुणगान करते हैं।" महिमा मंडित गौतम शब्द का अर्थ करते हुए कहते हैं- "गौ ” अर्थात् कामधेनुः ‘“त’” अर्थात् तरु / कल्पवृक्ष और "म" अर्थात् चिन्तामणि रत्न इसी अर्थ / भावना को प्रकट करते हुए विनयप्रभोपाध्याय गौतम रास में स्पष्टत: कहते हैं "चिन्तामणी कर चढ़ीयउ आज, सुरतरु सारइ बछिय काज, कामकुम्भ सहु वशि हुअए । कामगवी पूरइ मन- कामी, अष्ट महासिद्धि आवह धामि, सामि गोयम अनुसरउ ए ।।४२।। " विनयप्रभोपाध्याय यह भी विधान करते हैं- "ॐ हीं श्रीं अर्ह श्रीगौतमस्वामिने नमः” मन्त्र का अहर्निश जप करना चाहिए, इससे सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं। गौतम के नाम की ही महिमा है कि आज भी प्रातः काल में अहर्निश नाम स्मरण करने से सभी कार्य सफल होते दिखाई देते हैं। जैन समाज आज भी लक्ष्मी पूजन के पश्चात् नवीन बही-खाता में प्रथम पृष्ठ पर ही "श्रीगौतमस्वामीजी महाराज तणी लब्धि हो जो" लिखकर नाम महिमा के साथ अपनी भावि समृद्धि एवं सफलता की कामना उजाकर करते हैं। वास्तविकता यह है कि आज भी गौतम स्वामी का पवित्र एवं मंगल नाम जन-जन के हृदय को आह्लादित करता है। प्रतिदिन लाखों आत्माएँ आज भी प्रभात की मंगल बेला में भक्तिपूर्वक भाव-विभोर होकर नाम स्मरण करते हुए बोलती हैअंगूठे अमृत बसे, लब्धितणा भण्डार । श्री गुरु गौतम सुमरिये, वांछित फल दातार । नाम स्मरण के साथ जैन परम्परा में गौतम के नाम से कई तप भी प्रचलित है, जैसे १. वीर गणधर तप, २. गौतम पड़धी तप ३. गौतम कमल तप ४. निर्वाण दीपक तप इन तपों की आराधना कर भक्त जन गौतम के नाम का स्मरण-जप करते हुए साधना करते हैं। ऐसे महिमा मण्डित महामानव ज्योतिपुंज क्षमाश्रमण गणधर गौतम स्वामी को कोटिशः नमन । For Private & Personal Use Only शिक्षा एक यशस्वी दशक www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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