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नहीं है। तुम इसे अन्यथा मत लो, मैं कहीं और भिक्षा ले लूँगा। एक बात और जिस पिता की आत्मा की शान्ति की कामना तुम कर रहे हो वह तो तुम्हारे घर में ही है यह जो चितकबरा बकरा बँधा है वही तुम्हारे पिता की आत्मा है जो इस बकरे के रूप में जन्मी है, इस स्वयं मुझे बताया है। महात्मा ने बकरे द्वारा बताई गई पूरी बात दोहरा दी। सुब्रत स्तब्ध रह गया। वह बकरे से लिपट कर रोने लगा फिर थोड़ी देर बाद बकरों को खोलकर महात्मा के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा आपने मेरे हाथों घोर अनर्थ होने से बचा लिया। तब तक गाँव के कई लोग वहाँ एकत्रित हो चुके थे।
महात्मा ने उसे उद्बोधन दिया
"यह बकरा तुम्हारा पिता है अत: तुम्हें पश्चाताप हो रहा है। हर जीव किसी न किसी जन्म में किसी न किसी के माँ-बाप या दादा दादी रहे हैं। ८४ लाख जीव योनियों में भटकती आत्माओं का वध
करने से निश्चित रूपेण अपने पूर्वजों की हत्या का संयोग बन सकता है । अत: निरीह प्राणियों की हत्या त्याग कर दोहरे पाप से बचो।"
सुव्रत के साथ-साथ पूरे गाँव के लोगों ने यह उद्बोधन सुना एवं प्रतिज्ञा की कि वे आज से ही मांसाहार का त्याग करते हैं। और महात्मा को घर के अन्दर आकर भिक्षा ग्रहण करने का अनुरोध किया। सभी की आँखें नम थीं।
४, जगमोहन मल्लिक लेन, कोलकाता-७
शिक्षा - एक यशस्वी दशक
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जब
मद में
चूर मानव
नित नये
आविष्कारों से
स्वयं को
देता है।
उपमा ईश्वर की ।
तब अनहोनी
होनी होती है
असम्भव
सम्भव होता है
दुर्घटना घटती है ।
अहसास होता है।
हमें
अपनी
सीमाओं का
जन्म होता है बोझ हुई
उसके लिये
बूढ़ी हड्डियाँ
सीमाएँ
• अलका धाड़ीवाल
अब वह
ऋण चढ़ाने के
लोभ में
दूध का कर्ज उतारना
भूल गया ।
विद्वत खण्ड / ९५
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