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- उदित सूर्य को -
दादाजी ! बच्चे के मन में जरूर सवाल खड़े हुए थे कि माँ -- उदित छूल्य को.....
पहुँची। अंदर से बहू ने पुकारा बच्चों को। गीत की लड़ी बीच में ही 'चलो जैकी-डॉन। कम-कम खाना खालो बेटे।' छूटी, बच्चा भीतर भागा
बच्चा जानता है उपाय नहीं है बचने को। प्रताप बाबू के कान में बहू का कड़कता स्वर पड़ा - 'डिड -'दादाजी। मॉरनिंग में मिलेंगे। तब गीत छिकाएँगे न।' यू फिनिस योर होमवर्क?' बच्चा शायद सहमा-सा गुमसुम खड़ा
--'अभी आप खाना खालो, और छो जाओ। होगा - प्रताप बाबू को लगा। लगा कि उन्हें उसके संकट को शेयर दूसरे दिन रोज की तरह चार बजे प्राय: प्रताप बाबू का स्वर करना चाहिए। वे उठे और अंदर की तरफ बढ़े। तभी सहमता हुआ आरंभ हुआ - या कुन्देन्दु तुषार हार धवला..... स्वर पर साफ सुना उन्होंने - आई एम लरनिंग मातृभाषा मम्मी। बच्चा रजाई में कुनमुनाया। 'मम्मी दादाजी के पास जाऊँ।' - ह्वाट? मम्मी चिल्लायी। तब तक श्वसुर सामने थे।
और थोड़ा सो जाओ बेटे, थोड़ी देर में स्कूल के लिए तैयार 'इनका होमवर्क करवाइये, वरना स्कूल से कंप्लेन आएगी।' होना है ना।' बहू ने अनुशासित होकर मगर आदेश के स्वर में कहा।
नहीं और नहीं। थोड़ी देर के बाद आ जाऊँगा आपके पास,' तत्क्षण बच्चा उनको सौंपा तो गया पर उन्हें लगा कि उनसे कहता हुआ रजाई से बाहर निकल आया। छीन लिया गया है उसे। वैसे भी जो आदेश था, उसका पालन करना -'जाने दो' यह स्वर बच्चे के डैडी का था। सुबह-सुबह इस उनके लिए मुश्किल था। उनके लिए मुश्किल था कि बच्चों को तरह नींद का उचटना एकदम से अच्छा नहीं लगता जिन्हें। प्रताप आकाश, सूरज, चाँद, सितारे पहले न बताकर स्काई, सन, मन बाबू ने देखा वादे के अनुसार उनका पोता ब्रह्म मुहूर्त में उनके पास एण्ड स्टार बताए उन्हें। यह तो जाहिर था कि प्रताप बाब के लिए पहुंच चुका था। उन्होंने आह्लाद से गोद में उसे उठाया - चूमा और जितना मुश्किल नहीं था उससे कहीं तकलीफदेह था। फिर भी रजाई में गरमा कर आरंभ कियासहमे बच्चों को गोद में उठाकर ले आए वे अपने कमरे में। कमरे
- पूर्व दिशा में उदित सूर्य को इन आँखों से देखते हुए, सौ में आते ही बच्चा गले चिपटा और फफककर रो पड़ा। प्रताप बाब वर्ष तक हम, जीवित रहें, जीवित रहें, जीवित रहें। ने उसे जोर से भींचा छाती से प्यार की उष्मा से सेंका। बालपन ही
बच्चा अनुकरण कर रहा था। तो था। चोट और सूजन भुलाने में देर न लगी। फिर आँसू से भीगे
प्रताप बाबू सामने खिड़की की तरफ अपनी तर्जनी से इशारा गालों को लगातार चंबनों से सखा दिया। इतने में बदत वाट हो कर रहे थे जहाँ सूरज अपने निकलने का रक्तिम संकेत फैला रहा चुके थे दादा और पोते में। प्रताप बाबू ने धीरे-से सलाह की उससे। था और बच्चा एकटक उस ओर निहार रहा थापहले होमवर्क, फिर कथा, कहानी, पहेली गीत सब। बच्चे ने दादा।
पता नहीं कितना सच था पर प्रताप बाबू को लगा कि अपने के सहयोग से होमवर्क किया और अंदर ले गया माँ के पास। माँ बच्चों में हुई चूक का जैसे अब सुधार कर रहे है वे। देखती और वह खड़ा रहता, उतनी देर उसके पास धीरज न था,
रीडर, हिन्दी भवन, विश्वभारती वापस भागा-भागा पुन: दादाजी के पास।
शांतिनिकेतन-७३१ २३५, पश्चिम बंगाल __ - दादाजी! नाऊ देट सांग। दादाजी भींग गए अंदर से। पर अब रात हो चली थी, उन्हें पता था कि बच्चों की माँ अभी फिर पुकारेगी उन्हें खाना खिलाएगी। बच्चे सोएँगे फिर। उन्होंने प्यार से गोद में समेटा उसे - 'बेटे अभी आपको एक अच्छी-सी मजेदार 'कहानी सुनाते हैं, गीत सुबह।'
- कहानी?
'हाँ शार्ट स्टोरी बेटे। उसे अपनी भाषा में कहानी कहते हैं।' प्रताप बाबू ने कल्याण निकाला। “मत्स्यावतार" की तस्वीर दिखाते हुए कहानी सुनायी।
-'कितना मजा आया।'
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्वत खण्ड/९३
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