SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुआ व्यक्ति घुमक्कड़ की परीक्षा में बिलकुल अनुत्तीर्ण हो जाएगा, “यात्राओं के लेखक दूसरी वस्तुओं के लिखने में भी कृतकार्य हो यदि उसने अपने सोने-चाँदी के भरोसे घुमक्कड़चर्या करनी चाही। सकते हैं। यात्रा में तो कहानियाँ बीच में ऐसे ही आती रहती हैं, वस्तुत: संपत्ति और धन घुमक्कड़ी के मार्ग में बाधक हो सकते जिनके स्वाभाविक वर्णन से घुमक्कड़ कहानी लिखने की कला और हैं।..... केवल उतना ही पैसा पाकेट में लेकर घूमना चाहिए, शैली को हस्तगत कर सकता है। यात्रा में चाहे प्रथम पुरुष में लिखे जिसमें भीख माँगने की नौबत न आये और साथ ही भव्य होटलों या अन्य पुरुष में, घुमक्कड़ तो उसमें शामिल ही है, इसलिए और पाठशालाओं में रहने को स्थान न मिल सके। इसका अर्थ यह घुमक्कड़ उपन्यास की ओर भी बढ़ने की अपनी क्षमता को पहचान है कि भिन्न-भिन्न वर्ग में उत्पन्न घुमक्कड़ों को एक साधारण तल पर सकता है, और पहले के लेखन का अभ्यास इसमें सहायक हो आना चाहिए।' (घुमक्कड़ शास्त्र, पृष्ठ-३९) इसी पृष्ठ पर वे सकता है।'' (पृष्ठ १४१) इस उद्धरण से यह बात आसानी से लिखते हैं कि घुमक्कड़ धर्म की यह भी विशेषता है कि वह किसी समझी जा सकती है कि राहुल का कहानीकार या उपन्यासकार रूप जात-पांत को नहीं मानता, न किसी धर्म या वर्ण के आधार पर । इसीलिए इतना महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में पृष्ठ १४४ की इन अवस्थित वर्ग ही को।' पंक्तियों का भी उल्लेख किया जा सकता है- "घुमक्कड़ी लेखक राहुल के इस निष्कर्ष में उनके वैचारिक रुझान का स्पष्ट और कलाकार के लिए धर्म-विजय का प्रयाण है, वह कला-विजय आभास मिलता है। साम्यवाद का गहराई से अध्ययन, मनन एवं ____ का प्रयाण है, और साहित्य-विजय का भी। वस्तुत: घुमक्कड़ी को अवलंबन ग्रहण करने वाले राहुल ने घुमक्कड़ी में भी पूंजीवादी साधारण बात नहीं समझनी चाहिए, यह सत्य की खोज के लिए, प्रवृत्ति का घोर विरोध किया है- "सोने-चाँदी के बल पर बढ़िया कला के निर्माण के लिए, सद्भावनाओं के प्रसार के लिए महान् से बढ़िया होटलों में ठहरने, बढ़िया से बढ़िया विमानों की सैर दिग्विजय है।" करनेवालों को घुमक्कड़ कहना उस महान् शब्द के प्रति भारी तभी तो घुमक्कड़ स्वामी, घुमक्कड़शास्त्री राहुल का तरुणअन्याय करना है। इसलिए यह समझने में कठिनाई नहीं हो सकती तरुणियों को परामर्श है- "दुनिया में मानुष-जन्म एक ही बार होता कि सोने के कटोरे को मुँह में लिये पैदा होना घुमक्कड़ के लिए है और जवानी भी केवल एक ही बार आती है। साहसी और तारीफ की बात नहीं है। यह ऐसी बाधा है, जिसको हटाने में काफी मनस्वी तरुण-तरुणियों को इस अवसर से हाथ नहीं खोना चाहिए। परिश्रम की आवश्यकता होती है।" (घुमक्कड़ शास्त्र, पृष्ठ-३९) कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों। संसार तुम्हारे स्वागत के लिए - लेखक ने इस वृत्ति के लिए आत्मसम्मान को महत्वपूर्ण माना बेकरार है।" है तथा चापलूसी की निन्दा की है। उनका विचार है- 'वस्तुत: घुमक्कड़ को अपने आचरण और स्वभाव को ऐसा बनाना है, जिससे वह दुनिया में किसी को अपने से ऊपर न समझे, लेकिन साथ ही किसी को नीचा भी न समझे। समदर्शिता घुमक्कड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है, आत्मीयता उसके हरेक बर्ताव का सार है।' (घुमक्कड़ शास्त्र, पृष्ठ-४०) राहुल ने घुमक्कड़ी को साधन और साध्य दोनों माना है। उनके अनुसार- "अभी तक लोग घुमक्कड़ी को साधन मानते थे और साध्य मानते थे मुक्ति - देव दर्शन को, लेकिन घुमक्कड़ी केवल साधन नहीं वह साथ ही साध्य भी है।'' (पृष्ठ-१५४) लेखक ने ग्रंथ के समापन में यह आशा व्यक्त की है कि अधिक अनुभव और क्षमता वाले विचारक अपनी समर्थ लेखनी से निर्दोष ग्रंथ की रचना कर सकेंगे। . इस निबंध के आरंभ में कहा गया है कि यात्रा के प्रति आकर्षण ने ही राहुल के कृतित्व को बहुआयामी बनाया है, इसके समर्थन में 'घुमक्कड़ शास्त्र' की इन पंक्तियों का हवाला दिया जा सकता है शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy