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________________ 7 अलका धाडीवाल मेरे पापा जीवन की मुश्किल राहों को आसान बनाना सिखाया । मेरे पापा ने ।।१।। कर्म ही कर्म कुछ लेना-देना नहीं है। परंपरागत पाठयक्रम पराना पड गया है। शिक्षा मंत्री की नियुक्ति राजनीतिक होती है। वह बिलकुल नहीं जानता कि बच्चों पर क्या गुजरती है। कोई भी ऐरा-गैरा अपने सुझाव दे देता है और उस विषय को पाठ्क्रम में शामिल कर लिया जाता है। इससे स्कूली बच्चों के पहले से दबे कंधों पर और भी बोझ बढ़ जाता है। उन्हें स्कूल या घर पर कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता। बच्चों, शिक्षकों व अभिभावकों के बीच कोई सामंजस्य नहीं होता। वह रिश्ता तो काफी पहले ही मर गया। आज की शिक्षा स्कूली बच्चों के शोषण के अलावा कुछ नहीं है। विख्यात शिक्षा विशेषज्ञ स्वर्गीय राम जोशी ने प्रणाली की पुनः संरचना के लिए सभी शिक्षा संस्थानों को एक साल के लिए बंद करने का सुझाव दिया था। हालाँकि यह संभव नहीं हो सकता, पर अब बच्चों को शिक्षा के बोझ से धीरे-धीरे निजात देने का समय आ गया है। उन्हें कॉपियों और किताबों से छूट मिलनी ही चाहिए। उन्हें केवल स्कूल के समय में ही पढ़ाया जाना चाहिए। यदि चाहो, तो स्कूल का समय आधा घंटा बढ़ा दो। उन्हें किताब-कॉपियाँ स्कूल के डेस्क में ही बंद करने दो और तितलियों की तरह उड़ते हुए घर जाने दो। बच्चों को उनका बचपन वापस मिल जाएगा। माँ को बच्चों को कुछ सिखाने का समय मिल जाएगा और पिता को भी गर्व होगा। परीक्षा होने दो। पर रैंक मिलने की गलाकाट स्पर्धा नहीं होनी चाहिए। उसका कोई मतलब नहीं है। एसएससी का टॉपर, बी.कॉम के तृतीय वर्ष में फेल हो सकता है। गाँव में बैलगाड़ियों की दौड़ की याद है? बैलों को आगे निकलने के लिए कोड़े मारे जाते हैं। विजेता बैल वापस लौटते हैं। ट्रॉफी बैल के मालिक को दी जाती हैं, बैल को नहीं। सभी शिक्षा संस्थानों को इस चूहा-दौड़ से बाहर आना चाहिए और बच्चों को उनका बचपन और पिताओं को उनका पितृत्व वापस मिलना ही चाहिए। माँ एक माँ ही रहनी चाहिए। धर्म भी है सिखाया मेरे पापा ने ।।२।। जीवन की हर दो राहों में चुनना मार्ग सत्य का सिखाया मेरे पापा ने ।।३।। मुश्किलें तुम्हारीपरीक्षा है, धैर्य न खोनासिखाया, मेरे पापा ने ।।४।। कभी न भूलेगी वो बातें काम री ही पूछ है झूठ नहीं हर परिस्थिति में समझौता, बो पाणी मुलतान गयो, कैयां कुम्हार गधे नहीं चढ़े, अक्ल शरीरा उपजै ।।५।। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत् खण्ड/४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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