SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चुके हैं, सिर्फ एक खुराक और पीनी है। अगले वर्ष उसे भी पीकर किन्तु आचार्य नागार्जुन को कैद की कोठरी से मुक्ति नहीं मिली। वे अमर हो जायेंगे। वे कभी सिंहासन खाली नहीं करेंगे।" उनकी सुख-सुविधा की सारी व्यवस्था थी, परन्तु प्रजा से उन्हें दूर "फिर! क्या कोई उपाय नहीं?'' रखा जाता था। पत्नी ने कुछ क्षण विचार करने के बाद कहा, "हाँ, एक उपाय राज करते-करते जब नये राजा को दशक बीत गये, तो एक दिन उनकी रानी (पत्नी) ने अपने पति से आचार्य नागार्जुन के बार फिर उसने पति को बताया कि वह बिना एक क्षण विलम्ब में पूछा और उनका हालचाल जाना। बाद में रानी ने अपने पति को किये, बिना कोई घड़ी गंवाये औचक आचार्य नागार्जुन को गायब सलाह दी कि वह आचार्य को यहाँ बुला ले और पुन: उस अद्भुत करवा दे और उनके रस को तहस-नहस कर दे। यह कार्य इतनी रस के निर्माण प्रबंध की राज्य द्वारा व्यवस्था करवा कर उसकी तेजी से करना होगा कि राजा को कुछ पता भी न लगे, उन्हें आप तीनों खुराक पीकर अमर हो जाये। पर संदेह भी न हो और वे इस अद्भुत रस की तीसरी खुराक पी रानी की इस सलाह को सुनकर राजा मूक हो गया, फिर घड़ी भी न सकें। अन्यथा एक राजा के अमर हो जाने के बाद राज्य भर गम्भीर बना रहा और अंत में इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर परम्परा ही समाप्त हो जायेगी। दिया। इस संदर्भ में रानी के बार-बार के आग्रह को भी उसने ठुकरा इस बातचीत के ठीक अगले माह युवराज ने पत्नी की सलाह दिया और कहा, “प्रिये, अमरता भी एक प्रकार का भार ही है। यह के अनुसार अपने कुछ विश्वस्त साथियों, ससुराल के संबंधियों व भार भी उठाये नहीं उठेगा। अभी की प्रिय संततियां भी तब स्नेह, अपने कुछ विशेष अनुचरों के सहयोग से छल प्रपंच का सहारा श्रद्धा व लालित्य भूलकर रुक्ष हो जायेगी और कुटुम्बी जनों को ही लेकर, गुपचुप ही, अचानक आचार्य नागार्जुन को गायब करा दिया नहीं, माता व पिता को भी भार समझेने लगेंगी। मृत्यु भला करती और उस अद्भुत रस के निर्माण प्रबंध को तहस-नहस कर दिया। है कि वह धरती के लोगों में प्रेम बनाये रखती है। स्मृति व संस्मरणों इसी क्रम में उसने तैयार रस से भरी एक छोटी शीशी को भी नष्ट की दुनिया को सजीव रखती है और बिछड़ने के दुःख की कल्पना कर दिया और आचार्य को अपने ससुराल राज्य की एक अनाम से मिलन को मीठा किये रखती है। यह तो अच्छा हुआ कि पृथ्वी कोठरी में बंद करवा दिया। इस कार्य में युवराज को अपने ससुराल पर न तो अमृत की पैदाइश सम्भव है और न ही ईश्वर ने मनुष्य पक्ष से तो सहायता मिली ही, कुछ अन्य राजाओं व दो चार को कोई ऐसी मेधा दी है, जो अमरता का वर्चस्व कामय रखे। मेरी राज्यवैद्यों की भी मदद प्राप्त हुई। समझ से तो आचार्य को भी अपनी स्वाभाविक मृत्यु से मरना चाहिए राजा चिरायु इस समाचार को सुनकर शोक से मूर्छित हो गये। और ऐसा कोई अन्वेषण भी इस धरती के लिए कल्याणकारी नहीं उन्हें अपने परम प्रिय मित्र से अलग रहना असह्य जान पड़ा और होगा, जो अमरता को संबल दे। अमरता का भार जीवन के भार उन्होंने आचार्य नागार्जुन का पता लगाने के अनेक उपाय किये। से दुर्बह सिद्ध होगा। अतएव अच्छा है कि मनुष्य स्वाभाविक जीवन निर्माण प्रबंध के तहस-नहस का संवाद सुनकर राजा को इस षड़यंत्र जीये और स्वाभाविक मृत्यु मरे।" में किसी शत्रु नृप का हाथ जान पड़ा। भूलकर भी उनके मस्तिष्क में इस कांड में अपने हृदय प्रिय राजकुमार का हाथ होने का विचार नहीं आया। वे पीड़ा से छटपटाते रहे और आचार्य के पता लगाने के सभी उपायों पर राजकुमार से विचार-विमर्श करते रहे। परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। अंतत: आचार्य नागार्जुन का पता लगाने का बीड़ा उन्होंने अपने प्रिय राजकुमार को सौंप दिया। किन्तु क्या यह संभव था कि जिस राजकुमार ने स्वयं आचार्य को गायब करवा कर दूर देश की एक अनाम कोठरी में कैद करवाया हो वहीं उन्हें मुक्त कर राजा के समक्ष उपस्थित कर देता। दिन बीत गये। कालांतर में राजा चिरायु काल के ग्रास बने और युवराज राजा बना। सब कुछ वैसे ही चलता रहा। नया राजा भी अपने पिता राजा चिरायु की भांति ही प्रजा में लोकप्रिय हुआ। विद्यालय खण्ड/७० शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy