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क्षमा मिश्र, ९
सुदर्शन के देवपुतले जैसे छः पुत्र उसके देखने में आये। उसने कपिला से पूछा, "ऐसे रम्य पुत्र किसके हैं?" कपिला ने सुदर्शन सेठ का नाम लिया। यह नाम सुनते ही रानी की छाती में मानो कटार भोंकी गयी, उसे घातक चोट लगी। सारी धूमधाम बीत जाने के बाद माया-कथन गढ़कर अभया और उसकी दासी ने मिलकर राजा से कहा-'आप मानते होंगे कि मेरे राज्य में न्याय और नीति का प्रवर्तन है, दुर्जनों से मेरी प्रजा दुःखी नहीं है; परन्तु यह सब मिथ्या है। अंत:पुर में भी दुर्जन प्रवेश करें यहाँ तक अभी अंधेर है! तो फिर दूसरे स्थानों के लिये तो पूछना ही क्या? आपके नगर के. सुदर्शन नाम के सेठ ने मुझे भोग का आमंत्रण दिया; न कहने योग्य कथन मुझे सुनने पड़े; परंतु मैंने उसका तिरस्कार किया। इससे विशेष अंधेर कौन सा कहा जाय!" राजा मूलत: कान के कच्चे होते हैं, यह बात तो यद्यपि सर्वमान्य ही है, उसमें फिर स्त्री के मायावी मधुर वचन क्या असर नहीं करेंगे? तत्ते तेल में ठंडे जल जैसे वचनों से राजा क्रोधायमान हुआ। उसने सुदर्शन को शूली पर चढ़ा देने की तत्काल आज्ञा कर दी, और तदनुसार सब कुछ हो
भी गया। मात्र सुदर्शन के शूली पर चढ़ने की देर थी। सुदर्शन सेठ
चाहे जो हो परंतु सृष्टि के दिव्य भंडार में उजाला है। सत्य का प्राचीन काल में शुद्ध एकपत्नी व्रत को पालने वाले असंख्य प्रभाव ढका नहीं रहता। सुदर्शन को शूली पर बिठाया कि शूली मिट पुरुष हो गये हैं; उनमें से संकट सहन करके प्रसिद्ध होनेवाला कर जगमगाता हआ सोने का सिंहासन हो गया, और देवदुंदुभि का सुदर्शन नाम का एक सत्पुरुष भी है। वह धनाढ्य, सुन्दर नाद हुआ, सर्वत्र आनंद छा गया। सुदर्शन का सत्य शील विश्वमंडल मुखाकृतिवाला, कांतिमान् और युवावस्था में था। जिस नगर में वह में झलक उठा। सत्य शील की सदा जय है। शील और सुदर्शन रहता था, उस नगर के राजदरबार के सामने से किसी कार्यप्रसंग के की उत्तम दृढता ये दोनों आत्मा को पवित्र श्रेणि पर चढ़ाते हैं। कारण उसे निकलना पड़ा। वह जब वहाँ से निकला तब राजा की अभया नाम की रानी अपने आवास से झरोखे में बैठी थी। वहाँ से सुदर्शन की ओर उसकी दृष्टि गयी। उसका उत्तम रूप और काया देखकर उसका मन ललचाया। एक अनुचरी को भेजकर कपट भाव से निर्मल कारण बताकर सुदर्शन को ऊपर बुलाया। अनेक प्रकार की बातचीत करने के बाद अभया ने सुदर्शन को भोग भोगने का आमंत्रण दिया। सुदर्शन ने बहुत-सा उपदेश दिया तो भी उसका मन शांत नहीं हुआ। आखिर तंग आकर सुदर्शन ने युक्ति से कहा, "बहिन! मैं पुरुषत्वहीन हूँ!" तो भी रानी ने अनेक प्रकार के हावभाव किये। परंतु उन सारी कामचेष्टाओं से सुदर्शन विचलित नहीं हुआ; इससे तंग आगर रानी ने उसे जाने दिया। ___एक बार उस नगर में उत्सव था, इसलिये नगर के बाहर नगरजन आनंद से इधर-उधर घूमते थे। धूमधाम मची हुई थी। सुदर्शन सेठ के छ: देवकुमार जैसे पुत्र भी वहाँ आये थे। अभया रानी कपिला नाम की दासी के साथ ठाठबाट से वहाँ आयी थी।
विद्यालय खण्ड/६६
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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