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- सच्चिदानन्द दूबे, नवम् ग
0 अंकुर धानुका, षष्टम् ब
गुरू (शिक्षक)
मैं पहले हमारे देश के महान् कवि कबीरदासजी की एक पंक्ति प्रस्तुत करना चाहूँगा
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय । गुरू पानी की तरह निर्मल और स्वच्छ होता है। गुरू ज्ञान से परिपूर्ण होता है। ये हमें भी ज्ञान के मार्ग पर चलाना चाहते हैं और अपने सभी छात्रों को अपने से बड़ा बनाने की उम्मीद रखते हैं। ___ नदी जिस तरह से अपने लिए जल संचयन न कर प्यासों को पानी पिलाती है, उसी तरह गुरू अपने छात्रों को अपना सारा ज्ञान प्रदान कर देना चाहता है। __ जैसे पेड़ अपने लिए कुछ नहीं रखता। रास्ते के निवासियों को छाया प्रदान करता है, जीने के लिए आक्सीजन देता है और हमें खाने के लिए फल देता है, वैसे ही गुरू हमें बड़ा बनाने के लिए ज्ञान देता है।
गुरू स्वार्थी नहीं होता। इसलिए गुरू को भगवान् से भी बड़ी मान्यता दी गई है। कबीर ने तो यह कहा है
धरती सब कागज करूं, लेखनी सब बनराय; सात समुद्र मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय ।
बच्चों देशभक्त बन जाना बच्चो! देश भक्त बन जाना, भारत माँ की लाज बचाना, जिसका देश बड़ा होता है, तन कर वही खड़ा होता है, रोटी-रोटी मत चिल्लाना । रोटी तो है मात्र बहाना, पहले देश बाद में सब कुछ, यही पाठ तुम पढ़ते जाना। बच्चों! देश भक्त बन जाना, तुम ही हो राणा प्रताप, तुम ही हो इस बाग के माली । इसकी रक्षा ही जीवन है, यही अपना तन-मन-धन है। कभी न पीछे तुम मुड़ जाना बच्चों! देश भक्त बन जाना, भारत माँ की लाज बचाना।
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/५१
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