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________________ . SPONDI अपने आपको अनुशासित करो। अपने आपको अनुशासित करना इस समय मानव समाज को प्रकाशित करते रहे, कर रहे हैं और सबसे कठिन है। अपने आपको अनुशासित करने वाला वर्तमान करते रहेंगे। भगवान महावीर ने अपनी साधना के द्वारा धर्म और और भविष्य में जीवन की दोनों धाराओं में सुखी रहता है। संयमता की ऐसी ज्योति जलाई जो आज भी सत्य तथा कर्म के भगवान महावीर ने सत्य का साक्षात्कार किया है। उन्होंने प्रजा ईंधन से लगातार जल रही है। हित के लिए कुछ सत्यों का प्रतिपादन किया। उनकी वाणी को उस भगवान के जीवन दर्शन में शाश्वत् और सामयिक दोनों सत्य युग की जनता ने अपनाया। किन्तु कोई भी नया विचार उस समय व्यक्त हुए हैं। आज का यथार्थवादी युग उनके द्वारा अभिव्यक्त एकसाथ समाज-मान्य नहीं होता। भगवान महावीर ने अहिंसा और यथार्थ की क्रियान्वित का उपयुक्त समय है। स्वतंत्रता, सापेक्षता, संयम की जो धारा प्रवाहित की थी, वह उनके निर्वाण की दो सहअस्तित्व, समन्वय, समत्वानुभूति जैसे तत्व आज जाने अनजाने शताब्दियाँ बीतते-बीतते शिथिल होने लगी। लोकप्रिय बनते जा रहे हैं। इस सहज धारा में हम एक धारा और भगवान महावीर ने कर्म की शक्ति को स्वीकार किया, पर उसे मिलायें जिससे वह महाप्रवाह बन मानव जीवन की उर्वरा भूमि को सर्वोच्च शक्ति के रूप में मान्यता नहीं दी। कर्म का उदय समय पर अहिंसा और अनेकांत का सिंचन दे सके। वह सिंचन हम सबके ही नहीं होता, उससे पहले भी हो सकता है। यदि उसका उदय लिए, समूचे विश्व के लिए कल्याणकारी होगा। नियत समय पर ही हो तो, कर्मवाद एक प्रकार का नियतिवाद ही हो जाता है। नियतिवाद में पुरुषार्थ की सार्थकता नहीं होती। महावीर ने बताया की मनुष्य अपने आंतरिक प्रयत्न से बंधे हुए कर्म की अवधि को घटा भी सकता है और बढ़ा भी सकता है। कर्म के इस सिद्धांत ने मनुष्य को निराशा, अकर्मण्यता और पराधीनता की मनोवृति से बचाया। यदि वर्तमान का पुरुषार्थ सत् हो तो अतीत के अशुभ कर्म-संस्कारों को क्षीण कर या शुभ में बदलकर मनुष्य अन्धकार में प्रकाश ला सकता है। भगवान महावीर ने यह आभास कराया कि मनुष्य कर्म के अधीन नहीं है, कर्म उसकी अधीनता का निमित्त है। भगवान महावीर ने अध्यात्म की भूमिका पर कहा था-"मैं संयम और तप के द्वारा अपने आप पर शासन करूँ, यह मेरे लिए अच्छा है, कोई दूसरा डंडे के द्वारा मुझ पर शासन करे, यह मेरे लिए शर्मनाक बात है।" स्वतन्त्रता का यह विचार व्यवहार की भूमिका पर विकसित हुआ। उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति हुई। प्रत्येक देश स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलित हो उठा और वर्तमान विश्व का बड़ा भाग आज स्वतंत्र है। आज विषमता भी समता के आचरण में ही पल सकती है। वर्तमान में इन विचारों के साथ किसी का नाम जुड़ा नहीं है। ये या इसी कोटि के विचार विश्व के अन्य महापुरुषों ने भी दिये हैं। पर अनुसंधान करने पर पता चलेगा कि इन विचारों के पीछे भगवान महावीर के अनुभवों और वाणी का कितना बड़ा बल है। जिस प्रकार सूर्य के उदय होने पर अंधकार दूर भाग जाता है और चारों तरफ प्रकाश फैल जाता है। उसी तरह महावीर का जन्म भी ईसा पूर्व ८७७ में सूर्य की तरह हआ। उन्होंने अपने किरणरूपी उपदेशों से सारी दुनिया को प्रकाशित किया। भगवान् महावीर रूपी सूर्य के ईसा पूर्व ७७७ में अस्त हो जाने के बाद भी उनके उपदेश विद्यालय खण्ड/५० शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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