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________________ चाणक्य ने मेगास्थनीज को वार्ता का समय दिया। वह करना तो एक घोर अपराध है। नियम कानून बनाने वाले ही जब निश्चित समय पर वहाँ पहुँचा। महामंत्री नित्य की भाँति राष्ट्र के उन नियमों को तोड़ेंगे, तब उनके पालन के लिए अधिकारियों एवं कार्यों में व्यस्त थे। मेगास्थनीज के पहुंचने पर महामंत्री ने जलते हुए जनता को कैसे प्रेरित किया जा सकेगा। व्यक्ति की बातों और दीपक को बुझा दिया तथा दूसरा दीपक जला दिया और बोले "क्या उसके आदेशों या उपदेशों का असर दूसरों पर नहीं पड़ता, असर सेवा करूँ?" पड़ता है केवल उसके व्यवहार का, उसके व्यक्तित्व का।" मेगास्थनीज का विस्मय बढ़ा। कहा, "जिज्ञासायें तो आपसे मेगास्थनीज भाव-विह्वल था। उसका रोम-रोम उस महान् बात करने की बहुत सी है, लेकिन एक नई जिज्ञासा उत्पन्न कर दी तपस्वी को प्रणाम कर रहा था। उसका मस्तक झुक गया और मुख है आपने। आपने दीपक बुझाकर दूसरा दीपक क्यों जला दिया?" से निकला, “धन्य है वह देश, जहाँ आप जैसा महामंत्री हैं। सम्राट चाणक्य ने सरलता से उत्तर दिया, "अभी तक मैं महामंत्री से आपके विषय में सुना था और अब जान गया हूँ कि आपके देश की हैसियत से राष्ट्र का कार्य कर रहा था, अत: राष्ट्र की सम्पत्ति की उन्नति में आप ही के चरित्र के सच्चे सौन्दर्य का प्रकाश चमक का तेल जल रहा था। अब मैं चाणक्य की हैसियत से आपसे निजी रहा है। इस एक ही प्रश्न के उत्तर से हमारी सारी जिज्ञासाएँ शांत बातचीत कर रहा हूँ, अत: मेरे परिश्रम से उपार्जित आय से यह हो गई हैं। हमें अब आगे कुछ नहीं पूछना है।" दीपक जल रहा है। निजी कार्य के लिए राष्ट्रीय सम्पत्ति का उपयोग स्नेहा सुरेका, अष्टम् ब शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्यालय खण्ड/३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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