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प्रभाव के कारण सेठजी को बाध्य होना पड़ा और वे इस बात के लिए राजी हो गये कि सभी कर्मचारियों को सरकारी वेतन के बराबर वेतन देंगे, परन्तु कम्पनी के लाभ के लिए आप लोगों को जी-जान लगाकर काम करना पड़ेगा। इस बार सभी कर्मचारियों पर कम्पनी का पाँच लाख रुपये प्रतिमास खर्च बढ़ गया। कमलनाथ की जय-जयकार होने लगी। इस बार अनुभवानंद के अनुभव को सेठजी ने नहीं अपनाया था। उन्होंने जो कार्य एक लाख मासिक खर्च बढ़ाकर संपन्न करना चाहा था, वही खर्च सेठजी को पाँच गुना करना पड़ा। इसके बावजूद भी सेठजी का झुकाव कमलनाथ की ओर होने लगा क्योंकि उनकी समझ में आ गया था कि इसी के कारण मैं गज की जगह थान हार गया हूँ। अगर इसे अपने अनुकूल बना लूँ तो भविष्य में कम्पनी में कोई भी सिर उठाने योग्य नहीं रहेगा।
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/३१
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