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________________ राहुल अग्रवाल, १० ब गज़ की जगह थान हार गया एक कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों ने आपस में विचार करना शुरू कर दिया। उस कार्यालय के सबसे अनुभवी कर्मचारी के रूप में अनुभवानंद मशहूर थे। कार्यालय के सभी कर्मचारी उन्हें बड़े भाई जैसा सम्मान देते थे । अनुभवानंद को अनुभव के आधार पर अपने कार्यालय के भाई-बहनों के लाभ-हानि का पता था। अत: उन्होंने अपने सफेद बालों की दुहाई देते हुए कहा भाइयों एवं बहनों! हमें थोड़ा धीरज के साथ कोई भी कदम उठाना चाहिए। अनुभवानंद की इस सलाह पर कई कम उम्र के कर्मचारियों ने आपत्ति की और लोहा गर्म होने पर चोट करने की सलाह दी, परन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि एकाएक सफलता हाथ लगनी आसान नहीं है। उन्होंने बहुत खुशामद करके कार्यालय के कर्मचारियों को धैर्य धारण करने के लिए राजी कर लिया। दूसरे दिन अपनी भावना को अनुभवानंद ने उस कार्यालय के प्रधान अधिकारी के साथ सलाह करते हुए कहा- महाशय ! कार्यालय में अब त्याग और बलिदान करने वाले कर्मचारियों की कमी हो गयी है। नई पीढ़ी के लोग हमलोगों की तरह से सहनशील नहीं हैं। अतः उनमें उत्तेजना बढ़ रही है आप कृपया मालिक को यह सूचना दे दें कि उनकी वेतनवृद्धि से सम्बन्धित इच्छा जानकर कुछ ऐसा करें कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे । विद्यालय खण्ड / ३० Jain Education International अधिकारी महाशय ने यह आश्वासन दिया कि मैं साहब से अवश्य कहूँगा । कई बार इसकी बातें अधिकारी और अनुभवानंद के बीच हुई, परन्तु कोई लाभ दिखाई नहीं दे रहा था। आखिर में सभी कर्मचारियों के साथ स्थानीय ख्याति प्राप्त जनसेवकों से मिलना उचित समझकर उन्होंने अपनी समस्या के समाधान के लिए प्रयास किया। उनमें से एक प्रतिष्ठित एवं ख्याति प्राप्त जननेता ने उसका साथ दिया। बार-बार मिलकर इतनी सफलता पा ली कि कर्मचारियों की इच्छा के अनुकूल वेतन वृद्धि कराने में सफल हो गये। अनुभवानंद के अनुभव एवं युवासाथियों के उत्साह के कारण कार्यालय के कार्यक्रम में एक नवीनता आ गई। सभी कर्मचारियों के कार्य करने के ढंग को देखकर सेठ धनपतिजी को भी संतोष हुआ कि कम से कम सभी प्रसन्न होकर कम्पनी के उत्थान में लग गये हैं। खर्च जितना बढ़ा है, उससे दुगुनी आमदनी होने लगी है परन्तु जिस जगह अच्छे एवं कर्मठ लोग रहते हैं वहीं पर कुछ अकर्मण्य एवं चापलूस लोग भी रहते हैं। उनकी दृष्टि में अनुभवानंद खटकने लगे। उन लोगों ने सेठजी से उनकी तरह-तरह से निन्दा करनी प्रारम्भ कर दी। इसी बीच सेठजी का एक नई कम्पनी खोलने के लिए इमारत बनाने के लिए जगह की आवश्यकता आ पड़ी। संयोगवश अनुभवानंदजी के सहयोग से स्थानीय जननेता ने सेठजी के उस कार्य में भी काफी योगदान किया और सेठजी अपने घर आने-जाने के समय अनुभवानंद को भी साथ रखने लगे। अनुभवानंदजी ने सेठजी को सुझाव दिया कि नेताजी के बड़े लड़के को अपने कार्यालय में किसी उच्चपद पर नियुक्त कर दीजिए. भविष्य में इससे बहुत बड़ा लाभ आपको हो सकता है। सेठ धनपतिजी ने अनुभवानंदजी की भावना को समझा और उस नौजवान को बड़ी चतुराई से अपनी कम्पनी का ऑफिस इन्चार्ज बना दिया। कमलनाथ एक सुन्दर, स्वस्थ, आकर्षक एवं तेज नौजवान था। जब से वह कार्यालय में आया तब से एक नयी जान आ गयी। उसने अपने व्यवहार से सबका मन जीत लिया। कार्यालय के सभी कर्मचारी उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करने लगे । अनुभवानंद से मिलकर उसने कार्यालय के कर्मचारियों का एक संगठनात्मक स्वरूप बनाया और सेठजी का मन कर्मचारियों की ओर मोड़ने में सफल हो गया। अभी दो वर्ष भी नहीं बीते थे कि सरकारी वेतन की मांग को लेकर सभी बातें करने लगे । अनुभवानंद ने सेठजी को सचेत किया। उन्होंने सलाह दी कि अगर फिर से सभी कर्मचारियों को तीन इन्क्रीमेन्ट एक साथ दे दिये जाएँ तो सभी मान सकते हैं, परन्तु इस बार सेठजी ने ठान लिया था कि एक पैसा भी नहीं बढ़ायेंगे। कमलनाथ ने अपनी योग्यता का परिचय दिया एवं स्थानीय For Private & Personal Use Only शिक्षा एक यशस्वी दशक - www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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