SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को कहकर तुलसी ने इसी धारणा को व्यक्त किया है। इस हेतु का पल्लवन उन्होंने राम के जीवन के अनेक कोमल प्रसंगों को लेकर किया है। "रामचरितमानस" के रामजन्म, बाललीला, पुष्पवाटिका प्रसंग, स्वयंवर, विवाह, वनपथ आदि स्थलों और गीतावली के अभिषेकोत्तर जलक्रीड़ा, विहार, झूलना आदि प्रसंगों में तुलसी ने अपनी सरस दृष्टि को अभिव्यक्ति दी है। इन वर्णनों में कवि तुलसी ने आश्चर्यजनक संतुलन रखने का प्रयास किया। उनकी नैतिक दृष्टि कहीं भी लोकानुरंजन से परास्त परिलक्षित नहीं होती। उनके धनुष-बाणधारी राम लोकमर्यादा रक्षक के रूप में तत्कालीन परिस्थिति में निखर उठे हैं। तुलसी के युग की राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां अत्यन्त दयनीय तथा शोचनीय थीं। उन्होंने कहा हैगोड़, गवार, नृपाल, महि, यमन महामहिपाल। साम, न दाम, न भेद कलि, केवल दण्ड कराल॥ दोहावली ___ महामहिपाल यमन और गोड़गवार नृपाल राजधर्म पालन से बिल्कुल विमुख थे। कलि-करनी बरनिए कहां लौं, करत फिरत बिनु टहल टई है। तापर दांत पीसि, कर मीजत, को जानै चित कहां ठई है।। विनय पत्रिका उनका सैनिक शासन प्रजाशोषक था। तत्कालीन जनता राजकर, अकाल, महामारी आदि से अत्यन्त संत्रस्त थी। मानवधर्म और वर्णाश्रम व्यवस्था के पतन से समाज में उच्छृखलता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी थी। "रामचरित मानस", "कवितावली", "विनयपत्रिका" और "दोहावली" में कलियुग वर्णन को देखने से तत्कालीन परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता हैकलिकाल कराल में, रामकृपालु! यहै अलम्ब बड़ो मन को। तुलसी सब संजमहीन सबै, इक नाम अधार सदा जन को। कवितावली बौद्धधर्म और जैन धर्म पतनोन्मुख हुए। ब्राह्मणधर्म का पुनरुत्थान हुआ। वेदशास्त्र और पुराणों की महिमा फिर से बढ़ चली, किन्तु इस्लाम और इस्लाम धर्म के आगमन से इसमें गतिरोध उत्पन्न हुआ। निर्गुण संत सम्प्रदाय के अधिकांश अनुयायी अंत्यज थे। उन्होंने ब्राह्मण संपादित स्मार्त धर्म और धर्मशास्त्रों का जम कर विरोध किया। इस प्रकार सनातन धर्म को एक ओर इस्लाम और ईसाई धर्मों से संघर्ष करना पड़ा तथा दूसरी ओर बौद्ध, जैन और संतसम्प्रदायों से। वैष्णव, शैव और शाक्त ये तीनों सम्प्रदाय भी एक दूसरे से संघर्ष किया करते थे। इन धार्मिक परिस्थितियों से तुलसी अत्यन्त प्रभावित थे। तुलसी ने वेद पुराण की निंदा करने वाले मतों की कटु आलोचना की। हिन्दू धर्म के विभिन्न विरोधी सम्प्रदायों में सामंजस्य स्थापित किया। पुराण निगमागम के आधार पर विष्णु, शिव और शक्ति में अभेद दिखला कर उन्होने वैष्णवों, शैवों और शाक्तों के भेद-भाव को दूर किया। रामभक्ति के साधनरूप लोक मंगलकारी मानव धर्म और वर्णाश्रम धर्म समन्वित सनातनधर्म की स्थापना की। धन्य थे तुलसी, धन्य था उनका विराट व्यक्तित्व। उन्होंने आदर्शहीन समाज को महान् आदर्श दिया। निराशा के अंधकार में भटकती मानव जाति के हृदय में आशा का दीप प्रज्ज्वलित किया। इन्होंने पिता के लिए दशरथ, माता के लिए कौशल्या, पत्नी के लिए सीता, भाई के लिए भरत, सेवक के लिए लक्ष्मण, भक्त के लिए हनुमान, मित्र के लिए सुग्रीव और राजा के लिए राम का आदर्श चरित्र लोगों के सामने उपस्थित किया। इनकी रचनाओं में समाज, साहित्य, संस्कृति, दर्शन, भक्ति, लोक, राजनीति सब कुछ समाहित है। हम कह सकते हैं कि तुलसीदास लोकनायक थे, भक्त थे, समाज सुधारक थे और मानव भविष्य के जागरूक स्रष्टा थे। सह शिक्षक, श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता हीरक जयन्ती स्मारिका अध्यापक खण्ड / १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy