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Oशरतचन्द्र पाठक
अज्ञेय : व्यक्तित्व और कर्तृत्व
अज्ञेय-सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्यायन अज्ञेय आधुनिक हिन्दी कविता का एक दुर्निवार व्यक्तित्व । अज्ञेय बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी रहे हैं। कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना, संस्मरण, यात्रा वर्णन, नाटक - साहित्य की प्राय: सभी विधाओं को अपनी प्रतिभा के स्पर्श से भास्वरता प्रदान करने वाले अज्ञेय के बिना आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास अधूरा माना जायेगा। उनके सम्पूर्ण साहित्य का मूल्यांकन समयसाध्य कार्य है। वे मूलत: कवि रहे हैं। उनकी काव्य-यात्रा भी लगभग पचास वर्षों तक अनवरत चलती रही है। अज्ञेय का जीवन उनके काव्य के समान वैविध्यपूर्ण रहा है। यहां उनके जीवन और काव्य-संसार का विहगावलोकन ही संभव है।
इनका जन्म हुआ 7 मार्च 1911 को कसया पुरातत्व खुदाई शिविर में। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान बुद्ध ने जहां निर्वाण प्राप्त किया वहीं से अज्ञेय के जीवन का आरंभ हुआ। विद्यालयी शिक्षा का सुयोग कम मिलने के कारण आप बाल्यावस्था से स्वाध्यायी, एकान्तप्रेमी, गम्भीर और आत्मनिर्भर होते गये। पटना में राखालदास से बंगला सीखी। 1921-25 तक उटकमण्ड में रहे। 1921 में उडिपी के मध्वाचार्य ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार किया। पिता के पुस्तकालय का उपयोग करते हुए अंग्रेजी के कवियों और यूरोप के साहित्यकारों की रचनाओं का अनुशीलन किया। 1925 में पंजाब से मेट्रिक की परीक्षा दी और इंटर मीडियेट साइंस पढ़ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिल हुए। 1927 में लाहौर के फारमैन कॉलेज में बी.एस-सी.
में भर्ती हुए। इसी कॉलेज में नवजवान भारत सभा के सम्पर्क में
आए और आजाद, सुखदेव, भगवतीचरण बोहरा से परिचय हुआ। 1929 में बी.एस-सी. करके अंग्रेजी एम.ए. में दाखिल हुए। इसी साल क्रान्तिकारी दल में भी प्रविष्ट हुए। क्रान्तिकारी कार्यक्रमों में भाग लेते हुए 1930 में गिरफ्तार हुए। विभिन्न जेलों की यात्रा करते हुए 1936 में मुक्त हुए। मेरठ के किसान आंदोलन में भी भाग लिया। 1937 में विशाल भारत से जुड़े। 1941 में 'शेखर : एक जीवनी', प्रकाशित हुई। फिर ब्रिटिश सेना में नौकरी की। 1943 में "तारसप्तक" का सम्पादन किया। स्वाधीनता के पश्चात् इलाहाबाद से प्रतीक का प्रकाशन आरम्भ किया। रेडियो की नौकरी, विदेश भ्रमण, विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन, दिनमान का सम्पादन, 1979 में कितनी नावों में कितनी बार' शीर्षक कविता संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि इनके जीवन की प्रमुख घटनाएं हैं। 1983 में यूगोस्लाविया में इंटरनेशनल पोएट्री एवार्ड से सम्मानित हुए। अप्रैल 1987 में देहावसान।
अज्ञेय की कविता का विषय समग्र जीवन है। प्रकृति प्रेम. सौन्दर्य, शृंगार, संस्कृति आदि प्रायः सभी विषयों पर उन्होंने कविता की है। उनकी रचनाओं में चिन्तन की प्रधानता दृष्टिगोचर होती है। वे काव्यकर्म को एक गंभीर धर्म मानते हैं। उनकी दृष्टि में मनुष्य मूल्य-स्रष्टा प्राणी है और कवि अपनी रचना से जीवन को गतिशीलता प्रदान करता है। अज्ञेय वैयक्तिक स्वाधीनता के पोषक हैं। स्वयं स्वाधीन रहकर वे दूसरों को स्वाधीनता का अधिकार देते हैं। इसे न समझने के कारण कुछ लोग उन पर अहंवाद का आरोप भी लगाते हैं। परन्तु वे मानते हैं
अच्छी कुंठारहित इकाई, सांचे ढले समाज से,
अच्छा अपना ठाट फकीरी, मंगनी के सुखसाज से। उनकी वैयक्तिता में सामाजिकता का कोई विरोध नहीं है। व्यक्ति नदी की धारा में द्वीप के समान है। स्थिर रहकर भी वह स्रोतस्विनी के प्रति समर्पित है_यह दीप अकेला स्नेहभरा,
है गर्वभरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। अज्ञेय कवि के रूप में जीवन के आस्वादन में विश्वास करते हैं, वे नर की आंखों में नारायण की व्यथा देखते हैं। अज्ञेय क्षण के आग्रही हैं, क्षणिकता के नहीं। उनकी दृष्टि में क्षण भाव जीवन की अखंडता का प्रत्याख्यान नहीं, समर्थन है। पश्चिम की यांत्रिक सभ्यता व समूह-संस्कृति के प्रति उनके मन में तीव्र आक्रोश है। वे जीवन को न तो अनियंत्रित और उद्दाम आमोद-प्रमोद की ओर ले जाना चाहते हैं और न श्मशान को घर बनाने वाला अघोरी बनाना चाहते हैं। उनकी दृष्टि में व्यक्ति का अभियान विश्वजन की अर्चना में बाधक नहीं साधक है। तुलसी की आस्था उनके इन शब्दों में प्रतिध्वनित होती हैभावनाएं तभी फलती हैं,
हीरक जयन्ती स्मारिका
अध्यापक खण्ड/६
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