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________________ महोपाध्याय माणक चन्द रामपुरिया वीणापाणि शारदे अम्बे, तेरी जय जय गाऊँ वीणापाणि शारदे अम्बे, तेरी जय-जय गाऊँ। स्वर में शक्ति, भक्ति अन्तर में तेरी अविरल पाऊँ। हृदय तिमिर से आच्छादित है जगमग ज्योति जगा दे, भटक रहे प्राणी को अम्बे! निर्मल राह दिखा दे, ज्ञान-विभा की ज्योति-धार से मन को मैं नहलाऊँ। आज भुवन में त्राहि मची है, गूंज रहा है क्रन्दन, भीषण ज्वाला में जीवन का झुलस रहा है चन्दन, स्नेह-वारि दे, दग्ध धरा पर विमल सुगन्ध लुटाऊँ। द्वेष-घृणा-आतंकवाद से डरे-डरे जन लगते, सूखे हृदय-तन्त्र में कोई कोमल भाव न जगते, करुणा का कण बरसा दे माँ, जीवन-गीत सुनाऊँ। पीड़ित दुख से, भयाक्रान्त मन आँधी में है रहताघोर निराशा के झोंकों में शीत-घाम नित सहता, आशा की नव करुणकिरण दे, संशय-शोक मिटाऊँ। जड़ता के जड़ विषम-बन्ध में चेतनता अकुलाती, पावस की मावस में जीवन दृष्टि नहीं खुल पाती, अक्षर कर दे शब्द-शब्द, मैं दीपक-राग जगाऊँ। वीणापाणि शारदे अम्बे, तेरी जय जय गाऊँ। 47-डी, श्यामाप्रसाद मुखर्जी रोड, कलकत्ता-26 हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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