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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति पुलिस का पहरा रहता है । वहाँ कठगौला राय लक्ष्मीपतिसिंहजी द्वारा निर्मित उद्यान स्थित मंदिर के दर्शन करते हुए जीयागंज पहुँचे । जोयागंज-यहाँ बड़े सुन्दर आलीशान मंदिर हैं । पहले यहाँ का वैभव बहुत था, लेकिन अब वह बात नहीं रही, साधु-साध्वियों का आगमन भी कम होता है, फिर भी यहाँ के निवासियों में धर्मानुराग और शुद्ध धर्मनिष्ठा काफी है । पहले यहाँ जैन घर काफी थे पर अब व्यापार धन्धे के कारण कलकत्ता जाकर बस गये हैं । समय का प्रभाव है यह । दो दिन रुककर गंगा पार अजीमगंज गये । वहाँ शहर के बाहर शिखरबद्ध जिन मन्दिर में भ० सम्भवनाथ की प्रतिमा अति विशाल और बहुत मनोरम है । भ० नेमिनाथ का मन्दिर और प्रतिमा भी भव्य और चित्ताकर्षक है । भव्य मंदिरों और प्रतिमाओं के दर्शन करके हृदय प्रफुल्लित हो गया। उसी संध्या को पुनः जीयागंज लौट आये। २-३ दिन रुके। पुजाएँ आदि हुईं। लोगों ने रुकने का आग्रह किया किन्तु चातुर्मास का समय निकट आ रहा था और कलकत्ता के लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था, अतः रुके नहीं । कलकत्ता की ओर प्रस्थान कर दिया। मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में धर्म-जागरणा करते हुए आषाढ़ कृष्णा १३ के दिन माणकतल्ला में सुप्रसिद्ध राय बद्रीदास टेम्पल पहुँचे । कलकत्ता वालों ने हमारे ठहरने के लिए सामने ही दादाबाड़ी में समुचित व्यवस्था कर रखी थी। कुछ दिन वहीं ठहरे, क्योंकि कलकत्ता में तो आषाढ़ शुक्ला में ही प्रवेश करना था । एक कारण और भी था। पूज्याश्री समताश्री जी म० सा०, कुसुमश्री जी म. सा. आदि ६ ठाणा भी चातुर्मासार्थ आने वाले थे और प्रवेश सभी का साथ ही होना था । यथासमय वे पधार गये । शुभ मुहूर्त में बैंडबाजों और हर्षोल्लासपूर्वक कलकत्ता वालों ने नगर प्रवेश कराया। संघ के साथ बड़े मंदिर के दर्शन किये । कलाकार स्ट्रीट में स्थित जैन भवन में पहुँचे। वहाँ मंगल प्रवचन हुआ और प्रभावना के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। यहाँ से तुल्लापट्टी स्थित ११ नं० (बड़े मंदिर के ऊपर) उपाश्रय में आये । यहाँ हम लोगों के रुकने की उचित व्यवस्था थी। कलकत्ता चातुर्मास : सं० २०२६ चातुर्मास का शुभारम्भ हुआ । गुरुवर्या बड़तल्ला में स्थित बजाज धर्मशाला में थे। प्रतिदिन के व्याख्यान जैन भवन में होते थे । व्याख्यान में श्रोताओं की रुचि और आचार-विचार से परिचित कराने वाले, द्वादशांगी के प्रथम अंग, आचारांग सूत्र का प्रारम्भ किया गया । ओजपूर्ण वाणी और युक्तियुक्त सामयिक बिवेचन से श्रोता विभोर हो जाते । उपस्थिति दिनोंदिन बढ़ने लगी। मध्यान्ह में गुरुवर्या श्री रत्नचूड़ चौपी अपनी मधुर वाणी में फरमाती थीं। गुरुवर्याधी ने लक्ष्मीवल्लभ टीका, व श्री समयसुन्दरगणी की कल्पलता व्याख्या एवं बुद्ध मुनिजी म० की कल्पबोधिनी टीका के आधार पर कल्पसूत्र का परिष्कृत एवं परिमार्जित भाषा में हिन्दी अनुवाद का श्रीगणेश तो जयपुर में ही कर दिया किन्तु इस लेखन कार्य की परिसमाप्ति कलकत्ता चातुर्मास में हुई। कलकत्ता में साधु-साध्वियों के चातुर्मास हेतु स्थान का अभाव-सा था। हम लोग जहाँ रुके थे वहाँ भी काफी असुविधाएँ थीं । गुरुवर्या ने उचित स्थान लेने का प्रस्ताव संघ के सामने रखा । तुरन्त खण्ड ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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