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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी यहाँ से चार माईल दूर छोटी दादाबाड़ी पधारे। यहाँ जैन श्रावकों के अनेक घर हैं । अब तो वहाँ सन्त-सतियों के चातुर्मास भी होते हैं। आप भी वहाँ १५ दिन रुके। यहाँ आपकी संसार पक्षीय भुवासासु (कोटा वाली सेठानी गुलाबसुन्दरी) का 'केसर पोट्रो' के नाम से विशाल स्थान है और निवास स्थान भी। उनके आग्रह से दो दिन वहाँ ठहरे । सं० २०२६ का दिल्ली चातुर्मास दिल्ली संघ ने बड़े धर्मोत्साह और धूमधाम से नगरप्रवेश कराया। लाल किले के पास दिल्ली श्रीसंघ स्वागतार्थ उपस्थित था । चाँदनी चौक से नई सड़क होते हुए नौघरा के मंदिर पहुंचे, दर्शनवन्दन किये, फिर भोपुजरा धर्मशाला पधारे। वहीं आपका मंगल प्रवचन हुआ तथा प्रभावनादि का वितरण भी हुआ । फिर तो नित्य प्रवचन का क्रम शुरू हो गया। आपकी साहित्यिक, परिमार्जित भाषा शैली से जनता मन्त्र मुग्ध-सी बन जाती । इसी चातुर्मास में आपने श्रीमद् देवचन्द्रजी म० द्वारा रचित 'अध्यात्म प्रबोध' (इसका अपरनाम देशनासार है) का अति सुन्दर अनुवाद हिन्दी भाषा में किया जिसकी प्रथमावृत्ति तो छप चुकी है और द्वितीया वृत्ति प्रेस में है। राष्ट्रीय स्तर पर मणिधारी दादा की अष्टम शताब्दी समारोह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं । प्रचार-प्रसार भी उत्साह से हो रहा था । भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों और जैन समाज की सभी पत्र-पत्रिकाओं में समाचार प्रसारित किये गये, विदेशों को भी भेजे गये । दिल्ली सेन्टर होने के कारण एक लाख व्यक्तियों के आने की आशा थी। दिल्ली संघ में जैसा उत्साह था, कार्य शैली उतनी ही उत्तम थी, सभी कार्य सुचारु रूप से हो रहा था। शताब्दी समारोह में सम्मिलित होने के लिए खरतरगच्छ के सभी साधु-साध्वियों को आमंत्रित किया जा चुका था। चरितनायिका जी दादा गुरुदेव का जीवन चरित्र लिख रही थीं साथ ही गुरु स्तवन भी । दोनों ही पुस्तकें समय से छप गयी थीं। आप प्रथम बार ही दिल्ली पधारे थे अतः चातुर्मास के पश्चात हस्तिनापुर प्रस्थान किया, इसका एक कारण यह भी था कि शताब्दी समारोह चैत्र मास में होना था । हस्तिनापुर की यात्रा करके आप दिल्ली पुनः पधार गये । पालीताना से उग्र विहार करते हुए सर्वप्रथम पू० अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागर जी म. सा. एवं श्री दर्शनसागरजी म. सा. फागुन शुरू होते ही पधार गये और लाल धर्मशाला में ही विराजे । उनकी निश्रा में नूतन साध्वी जी की बड़ी दीक्षा फागुन सुदी ११ को धूमधाम से सानन्द सम्पन्न मणिधारी अष्टम शताब्दी समारोह । चैत्र प्रारम्भ होते-होते पूज्य प्रवर श्री उदयसागरजी म. सा., श्री प्रभाकरसागरजी म. सा., श्री महोदयसागरजी म. सा., श्री तीर्थसागरजी म० सा०, श्री कैलाशसागरजी म. सा. आदि भी पधार गये और जैन कोकिला श्री विचक्षणश्री जी म. सा भी अपनी शिष्या मंडली सहित यथासमय पधार गयीं । अन्य साधु-साध्वीजी महाराज आदि भी उचित समय पर पधार गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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