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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी कापरडा संघ जोधपुर निवासी चांदजीबाई सा० की भावना पू० श्री कांतिसागरसूरिजी म० की निश्रा में कापरडा संघ निकालने की थी और पूज्यश्री भी स्वीकृति दे चुके थे। सूरिजी की आज्ञा और चाँदजोबाई सा के अत्याग्रह से कापरडा तक आप सभी साथ रहीं । जोधपुर से आई हुई मुख्य श्राविका भी बीकानेर तक साथ चलने को तैयार हो गयीं। कापरडा से पूज्य गुरुदेव की आज्ञा लेकर आप सभी पीपाड़, साथीन होते हुए नागौर पधारी । वहाँ पूज्याश्री चंचलजी म० सा०, कमलाश्रीजी म. सा. आदि विराजमान थे। उनकी निश्रा में फागुन शुक्ला ५ को पूज्य कवि सम्राट का स्वर्गारोहण समारोह मनाया और मध्यान्ह में दादा गुरुदेव की पूजा भणाई । वहाँ से विहार कर आप सभी गोगोलाव होते हुए फाल्गुन शुक्ला ११ के दिन गंगाशहर पधारे । बीकानेर चातुर्मास सं० २०२५ का आपके बीकानेर आगमन के समाचार त्वरितगति से नगर भर में फैल गये। बड़े धूमधाम से नगर-प्रवेश कराया गया। हजारों लोग साथ थे। जुलूस बाजारों से होता हुआ निकला। चिंतामणिजी व आदेश्वर जी के मन्दिरों के दर्शन किये और शिष्यामंडली सहित रांगड़ी चौक स्थित सुगनजी के उपाश्रय में पहुँचे। वहाँ आपने जोशीला प्रवचन दिया जिसे सुनकर सभी लोग गद्गद हो गये । प्रतिदिन व्याख्यान का क्रम चालू हो गया। श्वाश्वत ओली पर्व आने वाला था, अतः आपने श्रीपालचरित्र शुरू कर दिया। समीक्षात्मक विवेचन और सुन्दर वाचन की सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। रामनबमी और महावीर जयन्ती का समारोह हर्षोल्लासपूर्वक मनाया गया तथा चैत्री पूर्णिमा के दिन भी अच्छी तरह पर्वाराधन किया गया। तत्वज्ञ श्रावकों के आग्रह पर आपने राजप्रश्नीय सूत्र का वाचन किया। आपकी विवेचना शैली से प्रभावित होकर जनता खिची चली आती, उपाश्रय का हॉल भर जाता, कितनी ही श्राविकाएँ तो बराबर के उपाश्रय की खिड़कियों में बैठकर आपका व्याख्यान सुनतीं । पूज्या शशिप्रभाजी ने वैशाख के महीने में शास्त्री के प्रथम खण्ड की निविघ्न परीक्षा दी। __ चातुर्मास प्रारम्भ हो गया। आपने आचारांग के वाचन का निर्णय लिया क्योंकि इसमें आचार धर्म का विशद विवेचन है। ज्ञानपूजा के साथ सूत्र का प्रारम्भ हुआ। आपकी व्याख्यान शैली से श्रोता झूम उठते थे । वास्तव में वस्तु का विश्लेषण करने की आप में अद्भुत क्षमता है। इसीलिए गच्छ में आप सर्वोपरि आगमज्ञा कही जाती हैं। इसी चातुर्मास में आचार्य विजयवल्लभसूरिजी के पट्टधर शिष्य पू० श्री विजयसमुद्रसूरिजी म० सा० अपनी शिष्यमंडली के साथ वर्षावास हेतु बीकानेर पधारे हुए थे। उनके साथ १८ मुनिराज और अनेक साध्वियाँ थीं। स्व० आचार्य विजयवल्लभसूरिजी म. सा. बड़े ही समयज्ञ, निश्छल और उदार विचारों वाले थे और थे गच्छ भेद भाव से सर्वथा परे । उनकी इस विशाल हृदयता का असर इनके साधु समुदाय पर पड़ा अतः आज भी वे किसी से मिलते हैं तो बड़ा स्नेह व आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करते हैं। खरतरगच्छ के साधु-साध्वी तो वैसे भी प्रायः सरल हृदयी और व्यवहार कुशल होते हैं । दोनों ओर के परस्पर सद्व्यवहार के कारण आचार्य श्री विजयसमुद्रसूरिजी व उनके समुदाय का चरितनायिका जो और उनको शिव्यामंडलों के साथ बड़ा हा सोजन्यापू गं व्यवहार था। संपूर्ग चातुर्मास में आचार्यश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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