SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति ३७ .. वि. सं. २०१६ में पण्डित प्रवर श्री दयारामजी से श्री शशिप्रभाजी ने संस्कृत का अध्ययन प्रारम्भ किया और अल्प समय में ही अच्छी गति करली फिर पण्डितजी की प्रेरणा से वाराणसी विश्वविद्यालय की प्रथमा परीक्षा का फार्म भर दिया और पण्डितजी की प्रेरणा से ही चरितनायिकाजी ने मध्यमा का फार्म भर दिया। लेकिन परीक्षा के समय समस्या यह आई कि परीक्षा केन्द्र ब्यावर में था, पूज्या प्रवर्तिनीवर्या को छोड़कर कैसे जायें ? यद्यपि शीतलश्रीजी म. सा., रमणीकश्रीजी म. सा., जिनेन्द्रश्रीजी म. सा. आदि साध्वियाँ सेवा में थीं पर व्याख्यान का भार कौन सँभाले ? यह सबसे बड़ी समस्या थी। किन्तु गुरुदेव की कृपा और पूज्य प्रवतिनीजी के आशीर्वाद से टोंक विराजित कल्याणश्रीजी म. सा. आदि जयपुर पधार गये । समस्या हल हो गई। प. प्रवर्तिनीजी के आदेश से आप (चरितनायिका) शशिप्रभाजी के साथ ब्यावर पधारे और परीक्षा दी। वापिस जयपुर लौटते समय मार्गस्थ अजमेर में निर्मलाश्रीजी की बड़ो दीक्षा हेतु अनुयोगाचार्य श्रद्धय कान्तिसागरजी म. सा. और पूज्य श्री दर्शनसागरजी म. सा. पधारे हुए थे। बड़ी दीक्षा का दिन समीप हो था अतः पूज्येश्वर के आदेश और विजयेन्द्रश्रीजी म. सा. के आग्रह के कारण बड़ी दीक्षा तक आपको अजमेर रुकना पड़ा। इसी दौरान पू. प्रवतिनीजी को प्रेरणा से जयपुरश्री संघ के अग्रणी श्रावक पू. अनुयोगाचार्य के पास चातुर्मास की विनती लेकर गये, जिसे उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी। बड़ी दीक्षा सानन्द सम्पन्न हुई। तदुपरान्त चरितनायिकाजी शशिप्रभाजी को साथ लेकर उसी संध्या को रवाना हुईं और उग्र विहार करके पू. प्रवर्तिनीजी के चरणों में जयपुर पधार गई। अनुयोगाचार्य का जयपुर चातुर्मास कुछ दिन बाद पू. अनुयोगाचार्यजी ने भी जयपुर के लिए विहार कर दिया। कुशल गुरुदेव की पूण्यभूमि मालपुरा के दर्शन करते हुए जयपुर पधारे । जयपुर संघ ने बड़ी धूम-धाम बैंड बाजों के साथ नगर प्रवेश कराया। व्याख्यान क्रम चालू हो गया। आप इतनी ओजस्वी, मधुरवाणी में प्रवचन फरमाते कि श्रोता मन्त्रमुग्ध हो जाते ।। मध्याह्न में चरितनायिकाजी जयानन्द केवलीरास अपनी सुरीली वाणी में फरमातीं। अनुयोगाचार्य के पधारने से धर्म की लहर सी आ गई। बाल साध्वी शशिप्रभाजी ने अठाई की तपस्याएँ की। फिर तो झड़ो ही लग गई। पंचरंगी, मास-क्षमण आदि तप खूब हुए। अठाई महोत्सव, वरघोड़ा, पूजा-प्रभावना आदि से चातुर्मास सफल रहा। __ आगे भी पू. चरितनायिकाजी के सं. २०, २१, २२, २३, २४ के चातुर्मास गुरुवर्या पू. प्रवर्तिनीजी की सेवा में जयपुर में ही हुए। आपश्री ने ज्ञान-ध्यान और सेवा का खूब लाभ लिया। जयपुर में सामूहिक व्याख्यानों की लहर ___ जयपुर में सं० २०२२ में व्याख्यानों की लहर आई। उस समय दिगम्बराचार्य देशभूषणजी म., तपागच्छ के विशालविजयजी म. सा., तेरापंथी श्री नगराजजी म., खरतरगच्छ की चरितनायिका श्री सज्जनश्रीजी म. सा. और स्थानकवासी किसी विद्वान आचार्य का चातुर्मास था। प्रति रविवार को एक ही मंच से सभी का व्याख्यान होता। पन्द्रह-बीस हजार श्रोताओं की उपस्थिति हो जाती। साम्प्रदायिक सुमेल और सद्भाव की छटा देखते ही बनती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy