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________________ ३६ जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्री रहतीं। बड़ा या छोटा कैसा भी काम हो, लगन से करतीं । काम को इतने सुचारु रूप से करतीं कि देखने वाले यह समझते कि आप इस कार्य में निष्णात हैं । जयपुर में पहले आयम्बिल खाता नहीं था । अतः कभी-कभी दो-दो मटकियाँ ( घड़े) पानी की आप घरों से ले आतीं । गोचरी आदि कार्यों में भी आप निष्णात थीं । कई बार व्याख्यान से सीधी उठकर गोचरी हेतु चली जाती । आपके मन में तनिक भी विचार नहीं आता कि मैं इतने बड़े घर की बहू हूँ, गोचरी के लिए कैसे जाऊँ । आपका तो सीधा सिद्धान्त है कि इस नश्वर शरीर से जितनी भी दूसरों की सेवा की जा सके, करनी चाहिए अन्यथा एक दिन तो यह मिट्टी में मिलना है । सेवा से ही मानव शरीर की सार्थकता है । किसी ने कहा है न से सेवा कीजिए, मन से भले विचार । धन से इस संसार में, करिए पर उपकार ॥ सज्जनों का तो कार्य ही पर उपकार करना है और इस रूप में आपश्री ने अपने सज्जनश्री नाम को सदा सार्थक किया है । चातुर्मास के पश्चात पू० श्री विलक्षणश्री म. सा. का विचार मालपुरा की ओर विहार करने का था । किन्तु जयपुर के जौहरी अध्यात्मयोगी श्रीमान् अमरचन्दजी नाहर ने मालपुरा का छःरी पालित संघ ले जाने की भावना व्यक्त की । आपश्री ने उनकी भावना को स्वीकृति प्रदान कर दी । प्रस्थान का समय निकट आ रहा था । चरितनायिका जी ने सोचा, प्रस्थान - विदाई समारोहपूर्वक होना चाहिए । ऐसा विचार करके आपने जयपुर के अग्रगण्य श्रावकों के बुलवाया और उन्हें प्रेरणा दी कि जैन कोकिला पूज्या श्री विचक्षणश्रीजी म.सा. को 'व्याख्यान भारती' पदवी से विभूषित किया जाय । प्रस्थान के दिन रामनिवास बाग में स्थित म्यूजियम के विशाल प्रांगण में जयपुर श्री संघ ने आपका अभिनन्दन करते हुए अभिनन्दन पत्र भेंट किया तथा चरितनायिकाजी द्वारा रचित एक गीतिका को स्थानीय जैन नवयुवक मंडल ने गायी । जिसके भावों में अवगाहन कर सभी के नेत्र सजल हो गये । तदुपरान्त सर्व संघ के समक्ष जयपुर खरतरगच्छ संघ ने पू० जौन कोकिला जी को 'व्याख्यान भारती' की पदवी से विभूषित किया । इसके उपरान्त सर्व संघ के साथ आपने मालपुरा प्रस्थान किया । नाहर सा० ने संघ भक्ति का अपूर्व लाभ लिया । आचार्यश्री का अप्रत्याशित वियोग सं. २०१७ के चातुर्मास के पश्चात् पालीताना में विराजित आचार्य सम्राट वीरपुत्र श्री आनन्द सागरजी म. सा. का पौष सुदी १० को हृदयगति रुक जाने से अचानक ही स्वर्गवास हो गया । आपश्री के पाट पर कविकुलकिरीट श्रद्धय गुरुदेव कवीन्द्रसागरजी म. सा. को विराजमान किया गया किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि सिर्फ ११ महीने की अवधि में ही सं० २०१८ की फाल्गुन शुक्ला ५ को आप भी देवलोक प्रयाण कर गये । श्रद्ध ेय गुरुदेव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, आशुकवि थे । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी में रचित आप की रचनाएँ बेजोड़ हैं, गायकों व श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध बना देती हैं । आपका देहावसान संघ की अपूरणीय क्षति है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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