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________________ खण्ड १ : जीवन ज्योति पू० चरितनायिकाजी का सं० २०१४ का चातुर्मास टोंक था और परम श्रद्धय कवि सम्राट श्रीकवीन्द्रसागरजी म० सा० का जयपुर में था। वैराग्यवती किरण की दीक्षा की बातें चल ही रही थीं, जयपुर वालों के विरोध को भी वे जानते थे और विश्वास था ये लोग दीक्षा होने नहीं देंगे, पू० प्रवर्तिनी जी म.सा० की भी यही धारणा थी। फिर भी किसी प्रकार दीक्षा हो जाये, ऐसी इनकी हार्दिक इच्छा थी। वैराग्यवती किरण की अन्तराय टूटी, पुण्य का उदय हुआ। कुछ लोग विघ्नसंतोषी होते हैं तो कुछ विघ्ननिवारक भी । ऐसा ही हुआ । ब्यावर के अग्रगण्य श्रावक उदयचन्दजी कास्टिया जयपुर पधारे, मसा० के दर्शन किये । चर्चा के दौरान संपूर्ण स्थिति से अवगत हुए तो बोले-यह सौभाग्य ब्यावर संघ को मिलना चाहिए । महाराज साहब ! आप वैरागिन किरण और इसके परिवारीजनों को इस तरह ब्यावर भेज दीजिए कि विघ्नसंतोषी जयपुर वालों को मालूम न पड़े। वहाँ दीक्षा सानन्द हो जाएगी। __ सर्वसम्मति से दीक्षा का निर्णय ले लिया गया। उदयचन्दजी ब्यावर चले गये । ब्यावर संघ के श्रावक भी दीक्षा की बात सुनकर सहमत हो गये। पू० प्रवर्तिनी महोदया ने प्रसिद्ध पण्डित श्रीभगवानदासजी से दीक्षा का मुहूर्त निकलवाया तो मिगसिर वदी ६ का मुहूर्त निकला । जयपुर वालों ने फोन से सब समाचार व्यावर दे दिये । दो दिन पहले वैरागिन किरण को ब्यावर के लिए रवाना कर दिया गया, उसके परिवार वाले भी पहुँच गये । जयपुर के मुख्य-मुख्य श्रावक श्रीमान हमीरमलजी सा० गोलेच्छा, सिरेहमलजी सा० संचेती, प्रेमचन्दजी सा० बांठिया आदि भी दीक्षा में सम्मिलित होने ब्यावर रवाना हो गये। वि० सं० २०१४ मिगसिर वदी ६ के शुभ दिन शुभ मुहूर्त में पूज्या विज्ञानश्रीजी म० की निश्रा में ब्यावर स्थित दादाबाड़ी के विशाल प्रांगण में वैराग्यवती किरण की दीक्षा सानन्द संपन्न हुई । उन्हें 'शशिप्रभाजी' नाम दिया गया और सज्जनश्रीजी म.सा० (चरितनायिकाजी) की शिष्या घोषित किया गया। श्रद्धय कवि सम्राट नूतन साध्वी शशिप्रभाजी की बड़ी दीक्षा कराने हेतु अजमेर पधारे । ब्यावर से पूज्या विज्ञानश्रीजी म.सा० आदि भी नूतन साध्वीजी को साथ लेकर अजमेर पधारे और टोंक से चरितनायिकाजी भी चातुर्मास सानन्द पूर्णकर जयपुर जाते हुए अजमेर पधारी । इधर मणिप्रभाजी, जो जयपुर की ही लड़की हैं और जिनकी दीक्षा टोंक में हुई तथा पूज्या जैन कोकिला की शिष्या बनीं, उनकी भी बड़ी दीक्षा अजमेर में करने का विचार हुआ । अतः शशिप्रभाजी के साथ ही मणिप्रभाजी की भी बड़ी दीक्षा अजमेर में ही कवि सम्राट के कर-कमलों से सं० २०१४, भिगसिर सुदी ११ को सानन्द संपन्न हुई। बड़ी दीक्षा के पश्चात् पू० चरितनायिकाजी नूतन साध्वी श्रीशशिप्रभाजी आदि के साथ प्र. महोदया के चरणों में जयपुर पधारी । वहीं नूतन साध्वीजी के अध्ययन की व्यवस्था हुई और छोटीमोटी अनेक परीक्षाएँ उत्तीर्ण करके उन्होंने अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। अजमेर में चैत्र मास की ओली आराधना करवाकर पू. विचक्षणश्रीजी म.सा. भी अपनी शिष्या मंडली सहित पू. प्रवर्तिनीजी के दर्शनार्थ जयपुर पधारी । यद्यपि आप सिर्फ दर्शनार्थ ही आई थीं लेकिन खण्ड १/५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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