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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति आज्ञा मांगी और इनकी आज्ञा प्राप्त कर आपने व पू. जिनेन्द्रश्रीजी म. ने श्रावण बदी ७ से मास-क्षमण की तपस्या प्रारम्भ कर दी । आपके साथ कमलादेवी ने भी तपस्या शुरू कर दी । (कमलादेवी सेठ हजारीमलजी बाँठिया की सुपुत्री थीं, युवावस्था आने से पहले ही विधवा हो चुकी थीं और चरितनायिकाजी के गृहस्थ जीवन की सखी थीं तथा जयपुर की एक मुखिया श्राविका के रूप में प्रसिद्ध थीं।) तेले के दिन से ही शासनदेवी के गीत प्रारम्भ हो गये और निरंतर एक महीने तक चलते रहे । नित्य प्रभावनाएँ होतीं, कभी-कभी दो-दो, तीन-तीन भी हो जातीं । पूर्णाहुति पर राजेन्द्रश्रीजी म. सा. ते अठाई और बहुत से लोगों ने अट्ठम तप किये। अठाई महोत्सव, महापूजन, वरघोड़ा, रात्रि जागरण आदि सभी धर्मानुष्ठान अभूतपूर्व कार्यक्रम के साथ सानन्द पूर्ण हुए। पारणे के पश्चात आपको टाइफाइड हो गया जो उचित औषधोपचार से ठीक हो गया। अध्ययन का आपको बचपन से शौक था और आज भी है। चातुर्मास के बाद शीतकाल में आपने पण्डित प्रवर वीरभद्रजी से प्रमाणनयतत्वालोक का तलस्पर्शी अध्ययन किया। वि. सं. २००६ में पू. गणिवर्यश्री बुद्धिमुनिजी म. सा., तथा साम्यानन्दजी म. सा. संघ की विनती को स्वीकार करके चातुर्मास हेतु जयपुर पधार गये थे। अतः प्रवचन कार्य से आप मुक्त हो गई थीं किन्तु मध्याह्न में चौपी आप ही बाँचती थी जिसमें जैन कवि केशराज रचित रामयश रसायन के साथ तुलसीकृत रामचरितमानस और मैथिलीशरण गुप्त के साकेत के सम्बन्धित अंश भी सुनातीं। जैन-अजैन अभी श्रोता मुग्ध हो जाते, प्राचीन उपाश्रय (जहाँ अभी विचक्षण भवन बना हुआ है) का हॉल खचाखच भर जाता। श्रोतागण राम के पवित्र चरित्र में इतने रसमग्न हो जाते, मानो सब कुछ उनके सामने ही घटित हो रहा हो । ऐसी अनुपम थी आपकी वक्तृत्व कला । आज तो इसमें और भी निखार आ चुका है। झुंझनु चातुर्मास : वि. सं. २००६ झुंझनु धार्मिक क्षेत्र के साथ-साथ ऐतिहासिक क्षेत्र भी है। यह क्षेत्र बहुत अनूठा है। यहाँ अनेक सतियाँ हुई हैं। कुछ महान सतियों के तो मन्दिर भी बने हुए हैं। इनमें राणीसती का मन्दिर तो विशेष प्रसिद्ध है। ग्यारहवीं शताब्दी में परमश्रद्धय गुरुदेव दादा सा. श्री जिनदत्तसूरि जी म. का भी इस क्षेत्र में विचरण हुआ था, ऐसा उनके स्वयं के लिये हुए 'चर्चरी' ग्रन्थ में वर्णन आता है। यहाँ की दादावाडी की ऊँचाई अन्य दादावाड़ियों की तुलना में काफी अच्छी है। उस समय यहाँ पर ६० घर श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के थे, सभी खरतरगच्छीय श्रीमाल गोत्र के और प्रायः सभी उच्च शिक्षा प्राप्त-कोई वकील तो कोई जज । श्री पूनमचन्दजी तो झुंझनु जिले के प्रसिद्ध वकील थे। धार्मिक क्षेत्र में भी झुंझनु संघ अग्रणी था, विद्वान साधु-साध्वियों के चातुर्मास होते ही रहते थे। लेकिन वर्तमान में तो २५-२७ घर ही रह गये हैं। प्रायः सभी बम्बई, जयपुर आदि नगरों में जाकर बस गये हैं। इसी झन्झनु संघ ने प्रवर्तिनी महोदया के समक्ष चातुर्मास हेतु विनती की। उनकी विनती को सम्मान देकर प्रवर्तिनीजी म. सा. ने निर्णीत शुभ दिवस में पू. चरितनायिका, मंडल-संचालिका पू. श्री उपयोगश्रीजी म. सा. पू. श्री शीतलश्रीजी म. सा. तथा राजेन्द्रश्रीजी म. सा. को झुन्झनु चातुर्मासार्थ विहार करवाया। मार्गस्थ ग्रामों में वीरवाणी सुनाते, धर्म की वंशी बजाते, जनता को माँस मद्य आदि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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