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________________ खण्ड ५ : नारी-त्याग, तपस्या, सेवा की सुरसरि भणियं सविसाएणं सुयणु समीहेमि संगयं तुज्झ । किंतु नियदुकियकम्मेण निमिओ पंडओ अहयं ॥ -आ. म. को. पृ. १४२ डा० हीरालाल जैन ने “सुदंसणचरिउ" की भूमिका में पुरुष द्वारा शील-रक्षा के उपायों के कई सन्दर्भ भारतीय साहित्य से खोज कर प्रस्तुत किये हैं।1 प्राकृत साहित्य में उपलब्ध शील-रक्षा के उपर्युक्त उपायों के प्रसंगों से स्पष्ट है कि भारतीय समाज में शील का पालन करना एक महत्वपूर्ण जीवन मूल्य रहा है। भारतीय नारी का शील एक ऐसा आभूषण माना गया है, जो उसे भौतिक आभूषणों से अधिक सुशोभित करता है। इसीलिए शील की महिमा सर्वत्र गायी गयी है। इस विवरण से यह भी प्रकट होता है कि भारतीय नारी संघर्षशीला रही है। वह संकटों से घबड़ाती नहीं है । ये प्रसंग इस बात की शिक्षा देते हैं कि नारी केवल भोग्या नहीं है। उसका भी अपना सम्मान एवं स्वतन्त्र व्यक्तित्व है । पुरुषों को उसकी रक्षा करनी चाहिए । यही बात नारी को भी सोचनी चाहिए कि वह भौतिक सुख से ऊपर उठे । प्राकृत साहित्य का शील, सदाचार, पुरुषार्थ, आत्मनिर्भरता आदि जीवनमूल्यों की दृष्टि से अध्ययन किया जाना चाहिए । १. जैन हीरालाल, सुदंसणचरिउ, वैशाली-१६७० भूमिका पृ० १८-२३ नारी के विविध रूप गाहा कुला सुदिव्वा व भावका मधुरोदका। ___ फुल्ला व पउमिणि रम्मा बालक्कंता व मालवी ॥ हेमा गुहा ससीहा वा, माला वा वज्झकप्पिता। सविसा गंधजुत्ती वा अन्तो दुट्ठा व वाहिणी ॥ गरंता मदिरा वा वि जोगकण्णा व सालिणी। नारी लोगम्मि विण्णेया जा होज्जा सगुणोदया । -इसिभासियाइं २२, २, ३, ४ नारी सुदिव्य कुल की गाथा के सदृश है, वह सुवासित मधुर जल के समान है, विकसित रम्य पद्मिनी (कमलिनी) के समान है और व्याल से लिपटी मालती के समान है। वह स्वर्ण की गुफा है, पर उसमें सिंह बैठा हुआ है। वह फूलों की माला है, पर विष पुष्प की बनी हुई है। दूसरों के संहार के लिए वह विष मिश्रित गंध-पुटिका है। वह नदी की निर्मल जल-धारा है, किन्तु उसके बीच में भयंकर भँवर है जो प्राणापहारक है। वह मत्त बना देने वाली मदिरा है। सुन्दर योग-कन्या के सदृश है। यह नारी है, स्वगुण के प्रकाश में यथार्थ नारी है। खण्ड ५/२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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