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________________ प्राकृत साहित्य में वर्णित शील-सुरक्षा के उपाय : डॉ० हुकमचन्द जैन (७) आत्मघात द्वारा - शील रक्षा का कोई उपाय नहीं दिखाई देने पर शीलवती नारियाँ आत्मघात करने के लिए प्रवृत्त हो जाती हैं किन्तु शील खण्डित नहीं होने देतीं । ऐसी कथाओं में सती चन्दना की कथा प्रसिद्ध है | 1 १६० कभी-कभी कोई कामी व्यक्ति अपने घर में ही अपने छोटे भाई की पत्नी के साथ उदाहरणार्थराजा मणिरथ अपने छोटे भाई की पत्नी; तो कभी पुत्रवधु तो कभी निकटतम सम्बन्धियों की स्त्रियों के साथ अपनी काम भावना व्यक्त करने लगते हैं । ऐसी विकट परिस्थितियों में भी नारी ने अपने शील की रक्षा की है। ऐसी ही एक कथा सत्य शील की अमर साधिकाएँ नामक पुस्तक में वर्णित है । (८) लोक - निन्दा का भय दिखाकर - राजा मणिरथ अपने छोटे युगबाहु की पत्नी मदन रेखा पर आसक्त था किन्तु मदनरेखा इस बात से अनभिज्ञ थी । वह बड़े भाई (राजा) को पिता की तरह मानती किन्तु कामाभिभूत राजा कई प्रकार के उपहार उसे भेजता रहता था । उसे राजा के प्रति किंचित मात्र शंका नहीं थी । एक दिन राजा उसे अकेली समझकर उसके भवन में चला गया और और कामभावना दर्शाने लगा । तव मदनरेखा उस बात को भाँप गयी। उसने राजा को ललकार कर भगा दिया । राजा उसे कई बार प्राप्त करने का प्रयत्न करता है किन्तु लोक- निन्दा का भय दिखाने पर वह विफल हो जाता है । " (E) पुरुषों द्वारा शील-सुरक्षा - प्राकृत साहित्य में ऐसी कथाएँ भी मिलती हैं जिसमें स्त्री पुरुषों से काग-याचना करती है । पुरुष उपदेश द्वारा या अन्य उपायों द्वारा अपनी शील वृत्ति का पालन करते हैं। यथा (क) 'समराइच्चकहा' के पंचम भव में ऐसी ही एक कथा वर्णित है जिसमें सनत्कुमार अपने पिता से रुष्ट होकर घर से चला गया। एक बार ताम्रलिप्ति में विलासवती के भवन के समीप से निकला दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गये। ये प्रेम-प्रसंग चल ही रहा था कि एक दिन प्रेमिका की सौतेली माता रानी अनंगवती ने सनत्कुमार को अपने पास बुलाया और स्वयं उससे प्रेम याचना को किन्तु सनत्कुमार ने उसकी बात को अस्वीकार करके अपने शीलव्रत का पालन किया । " (ख) ऐसी ही एक कथा समराइच्च कहा के अष्टम भव में भी आयी है जिसमें रत्नवती की को अज्ञान 'वेष्टा के फल के उदाहरण में गजिनी रत्नावती के पूर्व भव की कथा कही गयी है । 2 ( ग ) ऐसी ही एक कथा आख्यानक मणिकोश में भी मिलती है जिसमें सुदर्शन अपने को नपुसंक बताकर अपने शील की सुरक्षा कर लेता है । एक बार कपिल घर पर नहीं थे तब उसकी पत्नी कपिला ने अवसर देखकर सुदर्शन सेठ से काम भोग की प्रार्थना की । तब सुदर्शन सेठ अपने शील की सुरक्षा करता हुआ कहता है - मैं तुम्हें चाहता हुआ भी नपुंसक हूँ। ऐसा कहता हुआ वह वहाँ से भाग निकला । यथाः १. आख्यानकमणिकोश ( नेमिचन्द्र ) पृ० ३६, गा० ६-७ २. शास्त्री, राजेन्द्र मुनि, “सत्य - शील की अमर साधिकाएँ, पृ० १५६ - १५७ ३. वही पृ० १८४ १६१ ४. जैन रमेश चन्द्र, समराइच्चकहा ( अष्टम भाव ), मेरठ १६८०, पृ० ६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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