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खण्ड १ ! जीवन ज्योति
। उस समय पूज्य सुमतिसागरजी म. सा० और श्री मणिसागरजी म. सा. कोटा में ही विराजते थे । कारण था-आगम, शास्त्रादि की उचित मुद्रण व्यवस्था हेतु एक जैन प्रेस की स्थापना करवाना।
उमरावकुंवरबाई ने सेठसाहब से नई सेठानी नंदकुवरबाई को धर्म सिखाने का आग्रह किया तो उन्होंने जयपुर विराजित पूज्य प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्री जी म. सा. और पूज्य श्री उपयोगश्री जी म० सा० आदि साध्वियों से कोटा पधारने की विनती की।
सेठसाहब की विनती को सम्मान देकर साध्वीवृन्द कोटा पधारीं । साधु-साध्वी तथा श्रावकश्राविका-चतुर्विध संघ के एकत्रीकरण से धर्म को गंगा बहने लगी। चातुर्मास में खूब धर्म-ध्यान-तपस्या आदि हुए । साधु-साध्वियों के प्रवचनों से प्रेरित होकर लोगों ने अनेक प्रकार के व्रत-प्रत्याख्यान-नियम आदि ग्रहण किये।
सेठानी उमरावकुवरबाई अपने साथ नई सेठानी नन्दकुवरबाई और सज्जनकुमारीजी को लेकर व्याख्यान आदि में जाती थीं। गुरुदेव और गुरुवर्या की अमृतोपम वाणी ने सभी कोटा निवासियों को आकर्षित/प्रभावित किया । सज्जनकुमारीजी और नंदकुवरजी तो विशेष रूप से प्रभावित थीं। इन्हें पुण्यलाभ का विशेष अवसर प्राप्त हुआ था।
ज्ञानश्रीजी म. सा. तो ज्ञान की आगार और क्षमता, समता व सरसता की प्रतिमूर्ति ही थीं। पूज्य उपयोगश्री जी का अंग सौष्ठव अनुपम था, उनकी प्रवचन-कला में जादू था, वाक्चातुर्य अनूठा था और कंठ इतना सुरीला था कि श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
गुरुवर्या के इन गुणों से सज्जनकुमारीजी बहुत प्रभावित हुई और उनसे धार्मिक अध्ययन करने की इच्छा करने लगीं।
सज्जन व्यक्ति की कोई भी सदिच्छा अपूर्ण नहीं रहती, स्वयं ही ऐसे निमित्त मिल जाते हैं कि उनकी इच्छा पूरी हो ही जाती है । हमारी चरितनायिका की इच्छा भी पूरी होने में निमित्त बनी भूआ सा० उमरावकुंवरबाई।
उमराव वरबाई ने पूज्यश्री से निवेदन किया-महाराजसा० नई सेठानी (नन्दकवरबाई) और मेरे भतीजे की बह (सज्जनकुमारी) को धर्म सिखाने की कृपा करें। भतीजे की बहू तेरापंथियों की लड़की है, थोकड़े बोल आदि तो याद हैं; किन्तु मंदिरमार्गी धर्म से अनभिज्ञ है। उसकी मंदिर तथा पूजा आदि के विधि-विधानों में श्रद्धा जागृत हो जाये ऐसी कृपा करें।
महाराजश्री ने स्वीकृति दी । दूसरे दिन से ही नन्दकुँवरबाई और सज्जनकुमारीजी का धार्मिक अध्ययन शुरू हो गया ।
सज्जनकुमारीजी में जिज्ञासावृत्ति तीव्र थी। वह गुरुवर्याश्री के सामने इस प्रकार की जिज्ञासाएँ रखतीं
मंदिर शाश्वत हैं या अशाश्वत ? धर्म में इतने मतभेद क्यों हैं ? क्रियाओं तथा विधि-विधान में अन्तर क्यों है ? यद्यपि शास्त्र (आगम) सबके एक हैं पर मान्यताओं में इतना अन्तर क्यों है ?
इसी प्रकार की अन्य जिज्ञासाएँ भी आप रखतीं और गुरुवर्याश्री शास्त्रीय उदाहरणों द्वारा उनका समाधान करती।
साध्वीजी के बताए अनुसार आपने कई ग्रन्थों का अध्ययन करके नंदीश्वर दीप, शाश्वत प्रति
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