SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वास्थ्य पर धर्म का प्रभाव : युवाचार्य महाप्रज्ञ औषधि के द्वारा की जा सकती है। मनोकायिक रोग के लिये औषधि पर्याप्त नहीं है। मनोभावों को बदले बिना उसकी चिकित्सा सम्भव नहीं होती। स्वास्थ्य का मूलस्रोत है--भावों की विशुद्धि । हमारा पूरा जीवन भावधारा के द्वारा संचालित है। भाव से मन प्रभावित होता है और मन से शरीर प्रभावित होता है । जितने निषेधात्मक भाव हैं, वे सब रोग को निमंत्रित करने वाले हैं। क्रोध निषेधात्मक भाव है। उसका वेग अनेक रोगों को निमंत्रित करता है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि के लिये वह विशेष उत्तरदायी है। लोभ भी निषेधात्मक भाव है। उसके वेग से आहार के प्रति अरुचि, अग्निमांद्य आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । भावों से उत्पन्न होने वाले रोगों का लम्बा विवरण आयुर्वेद के ग्रन्थों में मिलता है। आज वैज्ञानिक भी भाव और रोग के सम्बन्ध की खोज में काफी आगे बढ़े हैं। स्वास्थ्य के पाँच लक्षण हैं :१. शारीरिक धातुओं और रसायनों का सन्तुलन २. प्राण का सन्तुलन ३. इन्द्रियों की प्रसन्नता ४. मन की प्रसन्नता ५. भावों की प्रसन्नता सन्तुलित आहार से धातुओं और रसायनों का सन्तुलन बनता है। इस सन्तुलन का सम्बन्ध आहार से है---यह स्पष्ट है। इसका सम्बन्ध धर्म से है-यह बहुत अस्पष्ट है। आहार का संयम करना एक तपस्या है और तपस्या धर्म है। जो व्यक्ति कोलेस्टेरोल बढ़ाने वाली वस्तुएँ अधिक मात्रा में खाता है वह धमनिकाठिन्य और हृदय रोग से मुक्त नहीं रह सकता। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में नमक खाता है, वह उच्च रक्तचाप और गुर्दे की बीमारी से कैसे बच सकता है ? अधिक मात्रा में सफेद चीनी खाने वाला क्या अम्लता और मधुमेह को निमन्त्रित नहीं कर रहा है ? हमारे शरीर के लिये आहार जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है आहार का संयम अथवा अस्वाद का व्रत । जीवन-यात्रा के लिये मन की चंचलता जरूरी है। वह सीमा से आगे बढ़ जाती है तब उससे स्वास्थ्य प्रभावित होता है। पहले मानसिक स्वास्थ्य फिर शारीरिक स्वास्थ्य । चंचलता को कम करना केवल मानसिक शान्ति की ही साधना नहीं है, वह शारीरिक स्वास्थ्य की साधना है। मन की एकाग्रता धर्म का आन्तरिक तत्त्व है । वह स्वास्थ्य का भी एक महत्वपूर्ण अंग है। आहार, नींद और ब्रह्मचर्य-ये तीन स्वास्थ्य के आधार माने जाते हैं। आहारसंयम की भाँति नींद का संयम भी आवश्यक है। बहुत नींद लेना स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है। सामान्यतः दिन में सोना अच्छा नहीं है। यदि आवश्यक हो तो बहुत कम समय के लिए। बहुत है, आधा घण्टा । एक घण्टा तो बहुत ज्यादा है। रात में भी अवस्था अनुपात में पाँच, छः या सात घण्टा नींद लेना पर्याप्त है । जागरूकता धर्म का महत्वपूर्ण अंग है। सुकरात से पूछा गया-संभोग कितनी बार करना चाहिये ? सुकरात-जीवन में एक बार। यह सम्भव नहीं हो तो? वर्ष में एक बार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy